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________________ णमोकार ॐ ह्रीं अह महानीतये नमः ॥४८१॥ अतिशय न्यायवान होने से प्राप महानीति हैं ॥४५१11 ॐ ह्रीं ग्रह महाक्षांतये नमः ।।४८२।। अतिशय क्षमावान होने से आप महाांति हैं ॥४८२॥ ॐ ह्रीं अर्ह महादयाय नमः ।।४८३॥ अतिशय दयालु होने से आप महादय है ।।४५३॥ ॐ ह्रीं अह महाप्राज्ञाय नमः ।।४८४।। अतिशय प्रवीण होने से प्राप महाप्राज्ञ हैं ।। ४८४॥ ॐ ह्रीं अहं महाभागाय नमः ॥४८५॥ अतिशय भाग्यशाली होने से आप महाभाग हैं ।।४८५॥ ॐ ह्रीं अह महानंदाय नमः ।।४८६॥ अतिशय प्रानन्द स्वरूप होने से अथवा भव्य जीवों को आनन्द देने से प्राप महानन्द हैं ।।४८६।। ॐ ह्रीं मह महाकवये नमः ॥४८७॥ शास्त्रों के मुख्य कर्ता होने से पाप महा कवि हैं ॥४८७॥ ॐ ह्रीं अह महामहाय नमः ॥४८८।। अत्यन्त तेजस्वी होने से पाप महा महा हैं ॥४८८।। ॐ ह्रीं अहं महाकीतिये नमः ।।४८६।। अापकी कीति सब जगह व्याप्त होने से प्राप महाकीति हैं ।।४८६।। ॐ ह्रीं अह महाकांतये नमः ।।४६०॥ अत्यन्त काँति युक्त होने से अाप महाकौति हैं ॥४६॥ ॐ ह्रीं अह महावपुषे नमः ॥४६१।। अतिशय सुन्दर शरीर होने से आप महावपु है ॥४६॥ ॐ ह्रीं अह महादानाय नमः ।।४६२।। बड़े भारी दानो होने से प्राप महादान हैं ।।४६२॥ ॐ ह्रीं अह महाज्ञानाय नमः ॥४६३॥ सबसे बड़े केवलज्ञान को धारण करने से पाप महा ज्ञान हैं ।।४६३॥ ॐ ह्रीं मह महायोगाय नमः ॥४६४|| योगों का अत्यन्त निरोध करने से प्राप महायोग हैं ।।४६४॥ ॐ ह्रीं अहं महागुणाय नमः ।।४६५।। लोकों का कल्याण करने वाले गुणों से सुशोभित होने से आप महागुण हैं ।।४६५।। ॐ ह्रीं अर्ह महामहापतये नमः ॥४६६।। पंच कल्याण रूप महापूजा के स्वामी होने से प्राप महापति हैं ॥४६६11 ॐ ह्रीं अहं प्राप्त महाकल्याण पंचकाय नमः ||४६७।। आपको गर्भाचतार आदि पांचों कल्याणक प्राप्त हुए हैं इसलिए पाप महाकल्याणक पंचक कहे जाते हैं ।।४६७॥ ॐ ह्रीं अह महाप्रभवे नमः ॥४६॥ अतिशय समर्थ अथवा सबसे बड़े स्वामी होने से प्राप महा प्रभु हैं ॥४६॥ ॐ ह्रीं अह महाप्रातिहार्याधीशाय नमः ।।४६६1 अशोक वृक्षादि पाठों प्रातिहार्यों के स्वामी होने से आप महाप्रातिहार्याधीश कहे जाते हैं ।।४६६।। ___ ॐ ह्रीं अहं महेश्वराय नमः ।।५० ०।1 सब मुनियों में उत्तम होने से अथवा प्रत्यक्ष ज्ञानी होने से पाप महा मुनि हैं ।।५००॥ ॐ ह्रीं ग्रहं मुनये नमः ।।५०१॥ सब मुनियों में उत्तम होने से अथवा प्रत्यक्ष ज्ञानी होने से माप महामुनि हैं ॥५०॥
SR No.090292
Book TitleNamokar Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeshbhushan Aacharya
PublisherGajendra Publication Delhi
Publication Year
Total Pages427
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size14 MB
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