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________________ जमोकार प्रेष ॐ ह्रीं मह प्राग्रहराय नमः ॥४५८।। सबमें श्रेष्ठता प्राप्त करने म प्राप प्राग्रहर हैं॥४५॥ ॐ ह्रीं पहूँ अभ्यग्ग्रयाय नमः ॥४५६।। श्रेष्ठों में भी सबसे श्रेष्ठ होने से पाप अभ्यम्प्रय हैं ।।४५६।। ॐ ह्रीं अहं प्रत्यग्राय नमः ॥४६०॥ बलवानों में भी अत्यन्तश्रेष्ठ होने से अथवा लोक का मुख्य भाग पसंद करने से प्रत्यय हैं ।।४६०।। ॐ ह्रीं अहं अग्ग्राय नमः ।।४६१।। सबके नायक होने से आप अग्मय हैं ।।४६१॥ ॐ ह्रीं यह अग्रिमाय नमः ।।४६२।। सबके अग्रेसर होने से भाप अग्रिम हैं ॥४६शा ___ॐ ह्रीं अहं अग्रजाय नमः ।।४६३।। आप सबसे बड़े होने से अग्रज हैं ।।४६३॥ ॐ ह्रीं अहं महातपाय नमः ।।४६४।। कठिन तपश्चरण करने से आप महातपा है ।।४६४।। ॐ ह्रीं अहं महातेजाय नमः ॥४६शा अतिशय तेजस्वी होने से व अतिशय पुण्यवान होने से आप महातेज हैं ।।४६५॥ ॐ ह्रीं अहं महोदर्काय नमः ।।४६६।। आपकी तपश्चया का फल सबसे बड़ा प्रांत केवलज्ञान है इसलिए आप महोदकं कहलाते हैं ।।४६६।। ॐ ह्रीं अह महोदयाय नमः ।।४६७।। अतिशय प्रतापी होने से अथवा आपका जन्म सबको पानन्द देने वाला होने से आप महोदय हैं ।।४६७।। ॐ ह्रीं महं महायशसे नमः ।।४६८१॥ अतिशय यशस्वी होने से आप महायशा हैं ।।४६८।। ॐ ह्रीं प्रहं महाधाम्ने नमः ॥४६॥ अतिशय प्रकाशन रूप होने से आप महाधामा हैं ॥४६॥ ॐ ह्रीं मह महासत्वाय नमः ॥४७०॥ अतिशय बलवान् होने से पाप महासत्व है ।।४७०।। ॐ ह्रीं अहं महाधृतये नमः ।।४७१।। पाप अतिशय धीर वीर होने से महाधुति हैं ।।४७१।। ॐ ह्रीं मह महापर्याय नमः ॥४७२॥ कभी भी व्यग्न न होने से माप महाघय हैं ।।४७२॥ ॐ ह्रीं ग्रह महावीर्याय नमः ॥४७३॥ अतिशय सामर्थ्यवान होने से माप महावीर्य हैं ॥४७॥ ॐ ह्रीं पह महासंपदे नमः ।।४७४।। समवशरण रूप अद्वितीय विभूति को धारण करने से प्राप महासंपत हैं ॥४७४॥ ॐ ह्रीं अह महाबलाय नमः ॥४७५॥ अतिशय बलवान होने से आप महाबल हैं ।।४७५॥ ॐ ह्रीं मह महाशक्तये नमः ॥४७६।। अनन्त शक्ति होने से भाप महाशक्ति हैं ।।४७६।। ॐ ह्रीं महं महाज्योतिये नमः ।।४७७॥ अतिशय कांति युक्त होने से आप महा ज्योति हैं ।।४७७॥ ह्रीं अहं महाभूतये नम : ॥४७८॥ पंचल्याणकों की महाविभूति के स्वामी होने से प्राप महाविभूति हैं ॥४७॥ ॐ ह्रीं अहं धुतये नमः ॥४७६॥ अतिशय शोभायमान होने से प्राप महाद्य ति हैं mel ॐ ह्रीं अहं महामतये नमः ॥४८०॥ अतिशय बुद्धिमान होने से पाप महामति है ॥४०॥
SR No.090292
Book TitleNamokar Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeshbhushan Aacharya
PublisherGajendra Publication Delhi
Publication Year
Total Pages427
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size14 MB
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