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________________ ४० णमोकार च ॐ ह्रीं कवये नमः || ३६३ ॥ धर्म, अधर्म का तिरूपण करने से श्राप कवि है || ३६३ ॥ ॐ ह्रीं हे पुराण पुरुषाय नमः ||३४|| अनादि कालोद होने से आप पुराण पुरुष हैं ।। ३६४|| ॐ ह्रीं ग्रह वर्षीयानाय नमः || ३६५ || आप अतिशय वृद्ध होने से वर्षीयान हैं ॥ ३६५॥ ॐ ह्रीं श्रहं वृषभाय नमः || ३६६ ।। शानी होने से प्राप वृषभ हैं || ३६६ ॥ ॐ ह्रीं श्रीं पुरुषे नमः || ३६७।। सबसे अग्रगण्य होते से श्राप पुरु हैं ।। ३६७॥ ॐ ह्रीं र्ह प्रतिष्ठा प्रसवाय नमः ॥ ३६८ ॥ प्रापसे स्थैर्य गुण की उत्पत्ति हुई है अथवा प्राप की सेवा करने से यह जीव जगत मान्य हो जाता है इसलिये प्राप प्रतिष्ठा प्रसव कहलाते हैं ।। ३६८ ॥ ॐ ह्रीं श्रहं हेतवे नमः ||३६|| मोक्ष के साक्षात्कार होने से प्रथवा सभी को जानने से आप हेतु हैं ॥ ३६६॥ ॐ ह्रीं भुवनेक पितामहाय नमः ॥ ४०० ॥ प्राप तीनों लोकों के जीवों की रक्षा करने अथवा उपदेश देने से भुवनैक पितामह हैं ॥४०॥ ॐ ह्रीं श्रीं श्रीवृक्षलक्षणाय नमः ॥४० १ || श्रीवृक्ष का चिन्ह होने से भाप श्रीवृक्ष कहलाते हैं ॥४०॥ ॐ ह्रीं आप लक्षण हैं ।। ४०२ ॥ हैं ॥४४॥ ॐ ह्रीं महं लक्षणाय नमः || ४०३ || लक्षण सहित होने से प्राप लक्षण्य हैं ॥ ४०३३॥ ॐ ह्रीं शुभलक्षणाय नमः || ४०४ || अनेक शुभलक्षणों से सम्पन्न होने के कारण शुभलक्षण हैं ॥ ४०६ ॥ ॐ ह्रीं श्रहं निरक्षाय नमः ॥४०५॥ इन्द्रिय रहित होने से प्राप निरक्ष हैं ॥४०५॥ ॐ ह्रीं ॐ ह्रीं ॐ हैं ॥ ४०८ ॥ श्लेक्षणाय नमः ॥ ४०२ ॥ सूक्ष्म होने से अथवा लक्ष्मी के द्वारा प्रालिंगन करने स हैं ॥ ४१० ॥ हैं ।।४१२।। पुण्डरीकाक्षाय नमः १४०६ ॥ कमल के समान नेत्र होने से श्राप पुण्डरीकाक्ष ॐ ह्रीं भई सिद्धिदाय नमः ॥ ४०६ ॥ मोक्षरूप सिद्धि को देने से भाप सिद्धिदा हैं ॥ ४०६ ॥ ॐ ह्रीं महे सिद्धसंकल्पाय नमः ॥ ४१० ॥ समस्त मनोरथ सफल होने से माप सिद्धसंकल्प पुष्कलाय नमः ॥ ४०७ || केवलज्ञान से वृद्धिगत होने से आप पुष्कल हैं ॥ ४०७ ॥ पुष्करेक्षणाय नमः ॥ ४०८ ॥ आप कमलदल के समान दीर्घ नेत्र होने से पुष्करेक्षण ॐ ह्रीं श्रीं सिद्धात्मने नमः ॥ ४११ ॥ म्राप पूर्णानन्दस्वरूप होने से सिद्धात्मा हैं । ४११ ।। ॐ ह्रीं सिद्धिसाधनाय नमः ||४१२|| मोक्षमार्ग रूप साधन भूत होने से आप सिद्धि साधन सम्यग्दृष्टियों प्रथवा विशेष शानियों के द्वारा जानने ॐ ह्रीं श्रीं बुद्धबोध्याय नमः || ४१३ ॥ योग्य होने से भाप बुद्धबोध्य है ।।४१३ ॥ ॐ ह्रीं श्रहं महाबोधाय नमः ॥ ४१४ ॥ बोषि हैं ।।४१४ ॥ ॐ ह्रीं मान हैं ||४१५।। प्रापका रत्नत्रय मति प्रशंसनीय होने से प्राप महावर्तमानाय नमः ॥। ४१ ।। आपका पूज्यपना अतिशय बढ़ा हुमा होने से माप वयं
SR No.090292
Book TitleNamokar Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeshbhushan Aacharya
PublisherGajendra Publication Delhi
Publication Year
Total Pages427
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size14 MB
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