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________________ णमोकार न ___ ॐ ह्रीं अहं महद्धिकाय नमः ॥४१६।। प्रांत अधिक विभूति को धारण करने से महाद्धिक हैं ।।४१६।। ॐ ह्रीं अर्ह वेदांगाय नमः ॥४१७।। प्रथमानुयोग मादि चारों वेदों के कारण होने से अथवा शान स्वरूप होने से आप वेदांग हैं ॥४१७।। ॐ ह्रीं प्रहं वेदविदे नमः ॥४१॥ चारों अनुयोगों के जानने से अथवा आत्मा का स्वरूप जानने से प्राप वेदविद् हैं ॥४१८॥ ___ॐ ह्रीं अहं वेद्याय नमः ।।४१६।। पागम के द्वारा जानने योग्य होने के कारण पाप वेद्य हैं ।।४.१६॥ ॐ ह्रीं अहं जातरूपाय नमः ।।४२०।। उत्पन्न होने के समान ही आपका स्वरूप है अथवः प्राप रूप रहित हैं इसलिये आप जात रूप हैं ।।४२०॥ ॐ ह्रीं ग्रहं विदांबराय नमः ॥४२१॥ प्राप विद्वानों में श्रेष्ठ होने से बिदाम्बर हैं ।।४२१।। ॐ ह्रीं अहं वेदवेद्याय नमः ।।४२२।। केवलज्ञान के द्वारा अथवा पागम के द्वारा जानने योग्य होने से आप वेदवेद्य हैं ।।४२२।। ॐ ह्रीं महं स्वसंवेद्याय नमः ।।४२३।। अनुभव गम्य होने से आप स्वसंवेद्य हैं ।।४२३॥ ॐ ह्रीं ग्रह विवेदाय नमः ।।४२४।। प्रापं विलक्षण ज्ञानी होने से अथवा आगम के अगोचर होने से विवेद हैं 11४२४॥ ॐ ह्रीं मह वदतांबराय नमः ।।४२५|| वक्ताओं में श्रेष्ठ अथवा उत्तम होने से आप बदतांबर है ॥४२५|| ॐ ह्रीं अह अनादिनिधनाय नमः ॥४२६।। आदि, अंत रहित होने मे आप अनादि निधन हैं ।।४२६।। ॐ ह्रीं अहं व्यक्ताय नमः ।।४२७}ज्ञान के द्वारा स्पष्ट प्रतिभासित होने से प्राप व्यक्त हैं ॥४२७|| ॐ ह्रीं ग्रह व्यक्तवाचये नमः ।।४२८॥ आपके वचन समस्त प्राणियों के समझने योग्य हैं इसलिये पाप व्यक्तवाक् हैं ।।४२८।। . ॐ ह्रीं अह व्यक्त शासनाय नम: ।।४२६।। आपकी प्राज्ञा अथवा मत समस्त संसार में प्रसिद्ध होने से अथवा आपके कहे हुये शास्त्रों में पूर्वापर विरोध न होने से ग्राप व्यक्त शासन हैं ।।४२६।। ॐ ह्रीं ग्रह युगादिकृते नमः ।।४३०।। आप युग की आदि अर्थात् कर्म भूमि के कर्ता हैं, इसलिये युगादिकृत हैं ।।४३०॥ ॐ ह्रीं महं युगाधाराय नमः ।।४३१।। ग्राप युगों का प्राधार होने से युगाधार है ।।४३१।। ॐ ह्रीं अहं युगादये नमः ।।४३२।। युग के प्रारम्भ में होने से पाप युगादि हैं । ४३२१॥ ॐ ह्रीं मह जगदादिजाय नमः ।।४३३॥ जगत् के आदि में अर्थात् कर्मभूमि के प्रादि में उत्पन्न होने से प्राप जमदादिज हैं ||४३३।। ___ॐ ह्रीं अहं प्रतीन्द्राय नमः ॥४३४॥ इन्द्र, नरेन्द्र, प्रादि सबके विशेष स्वामी होने से आप प्रतीन्द्र हैं ॥४३४॥ __ॐ ह्रीं ग्रह अतींद्रियाय नमः ॥४३५।। इन्द्रिय गोचर न होने से आप अतींद्रिय हैं ।। ४३५।। ॐ ह्रीं अहं घींद्राय नमः ।।४३६॥ ज्ञान होने से अथवा शुक्लध्यान के द्वारा परमात्मस्वरूप होने से घींद्र हैं ॥४३६॥
SR No.090292
Book TitleNamokar Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeshbhushan Aacharya
PublisherGajendra Publication Delhi
Publication Year
Total Pages427
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size14 MB
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