________________
णमोकार च
ॐ ह्रीं श्रहं पंचब्रह्ममयाय नमः || ४६|| माप पंचपरमेष्ठी स्वरूप हैं इसलिए आप पंचब्रह्ममय कहलाते हैं ॥४६॥
ॐ ह्रीं श्रीं शिवाय नमः ||५० || माप सदा परमानन्द में रहते हैं, तथा प्राय सब का कल्याण करने वाले हैं इसलिए भ्रापको शिव कहते हैं ॥ ५० ॥
ॐ ह्रीं महं पराय नमः ॥ ५१॥ आप जीवों को मोक्ष स्थान में पहुचाते हैं इसलिए पर कहे जाते हैं || ५१||
ॐ ह्रीं श्रीं परतराय नमः । ५२ ।। धर्मोपदेश देने से आप सबके गुरु हैं एवं सबसे श्र ेष्ठ हैं इसलिए परतर कहे जाते हैं ।। ५२ ।।
२४
सूक्ष्माय नमः || ५३ || आप इन्द्रियों के द्वारा नहीं जाने जा सकते। आप केवलज्ञान के द्वारा ही जाने जा सकते हैं इसलिए श्राप सूक्ष्म कहलाते हैं || ५३ ||
ॐ ह्रीं
ॐ ह्रीं यह परमेष्ठिने नमः || ५४ || इन्द्रादिकों के द्वारा पूज्य ऐसे मोक्षस्थान में एवं अरहंत पद में रहने के कारण श्राप परमेष्ठी कहलाते हैं || ५४ ||
ॐ ह्रीं श्रीं सनातनाय नमः || ५५ ॥ तीनों कालों में आप सदा नित्य रहते हैं इसलिए सनातन कहे जाते हैं ।। ५५।।
ॐ ह्रीं श्रीं स्वयं ज्योतिषे नमः || ५६ ॥ श्राप स्वयं प्रकाश रूप हैं, इसलिए स्वयं ज्योति हैं ।। ५६ ।।
ॐ ह्रीं श्रहं प्रजाय नमः || ५७ || आप संसार में उत्पन्न नहीं होते इसलिए आप
अज हैं ।। ५७ ।।
ॐ ह्रीं प्रजन्मने नमः || ५८ || आप किसी शरीर को धारण नहीं करते इसलिए प्राप अजन्मा हैं ||५८ ||
ॐ ह्रीं अहं ब्रह्मयोनये नमः || ५१ || आप ब्रह्म अर्थात् सम्यग्दर्शन, ज्ञान, चारित्र की योनि अर्थात् खान हैं, इसलिए श्राप ब्रह्मयोनि कहे जाते है ।। ५६ ।।
ॐ ह्रीं अहं अयोनिजायनमः || ६० || माप मोक्ष स्थान में चौरासी लाख योनियों से रहित हो कर उत्पन्न होते हैं, इसलिए प्राप प्रयोनिज कहलाते हैं || ६ ||
ॐ ह्रीं मोहारिविजयिने नमः || ६१|| श्राप मोहनीय कर्म रूपी शत्रु को जीतने वाले हैं इसलिए आप मोहरिविजयी कहे जाते है ।। ६१॥
ॐ ह्रीं यह जेत्रे नमः ||६२|| माप सब से उत्कृष्ट रीति से रहते हैं इसलिए आप जेता कहे जाते हैं ॥६२॥
ॐ ह्रीं धर्मचक्रिणे नमः ।। ६३ ।। गमन करते समय सदा आपके भागे धर्मचक्र रहता है इसलिए आपको धमंचकी कहते हैं || ६३ ||
ॐ ह्रीं अर्ह दयाध्वजाय नमः || ६४ || सब प्राणियों पर दया करते रूपी भापकी प्रसिद्ध ध्वजा फहरा रही है इसलिए माप दयाध्वज कहलाते हैं || ६४ ||
ॐ ह्रीं प्रशतारिणे नमः ||६५ | | आपके कर्मरूपी शत्रु शति हो गए हैं इसलिए आप प्रशांतार कहलाते हैं ॥ ६५ ॥
ॐ ह्रीं अनंतात्मने नमः ॥ ६६ ॥ श्राप अनंत गुणों को धारण करने वाले हैं तथा आपकी आत्मा कभी नष्ट नहीं होती और भाप केवलज्ञानी हैं इसलिए अनंतात्मा कहे जाते हैं ।। ६६ ।।