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________________ णमोकार ग्रंप प्रागे कृतिका प्रादि नक्षत्रों के परिवार रूप तारों का प्रमाण कहते हैं कृतिका आदि नक्षत्रों के मूल तारों को एक हजार एक सौ ग्यारह से गुणा करने पर जो संख्या हो वह कृतिका प्रादि नक्षत्रों के परिवार रूप तारों को संख्या होती है जैसे कृतिका नक्षत्र के मूल तारे छह हैं उस की संख्या को एक हजार एक सौ ग्यारह से गुणा करने पर छह हजार छह सौ छयासठ कृत्रिका नक्षत्र के परिवार रूप तारों की संख्या हुई। इसी प्रकार अन्य नक्षत्रों के परिवार रूप तारों की संख्या होती है । एक चन्द्रमा के परिवार रूप समस्त तारे छयासठ हजार नौ सौ पिचहत्तर हैं अर्थात् एक चन्द्रमा सम्बन्धी एक सूर्य प्रठासो ग्रह, अठाईस नक्षत्र और छयासठ हजार नौ सो पिचहत्तर कोड़ा-कोड़ी तारे हैं । यह सब एक चन्द्रमा का परिवार है । इतना-इतना ही सब चन्द्रमा चाहिए । इनमें चन्द्रमा इन्द्र और सूर्य प्रत्येन्द्र होता है। जम्बूद्वीप में दो चन्द्र हैं और दो ही सूर्य हैं. एक सौ पिचहत्तर ग्रह, छप्पन नक्षत्र और एक लाख तेंतीस हजार नौ सौ पचास कोडाकोड़ी तारे जम्बूद्वीप में होते हैं । इनको एक सौ नब्बे का भाग देने पर जो प्रमाण हो उसको भरत आदि क्षेत्र वा क लाचलों की -एक से दुगनी शलाका जो विदेह पर्यत है और पश्चात् माधी-पाधी है से गुणा करने पर भरत आदि क्षेत्र वा हिमवन् प्रादि कुलाचलों के नारों का प्रमाण होता है। भरत क्षेत्र की एक शलाका, हिमवन् कुलाचल की दो शलाका, हैमबत् क्षेत्र की चार शलाका ऐसे क्रमशः द्विगुण-द्विगुण बढ़ते हुए विदेह में चौसठ शलाका हैं पश्चात् प्राधी-प्राधी हैं । इन शलाकामों से तारागणों की एक सौ नब्बे द्वारा विभाजित संख्या को गुणन करने से क्रमशः भरत क्षेत्र में सात सौ पांच कोड़ा-कोड़ी, हिमवन् पर्वत पर चौदह सौ दस कोड़ा-कोड़ी, महाहिमवान् पर्वत पर छप्पन सौ चालीस कोड़ा-कोड़ी, हरि क्षेत्र में ग्यारह हजार दो सौ अस्सी कोड़ा-कोड़ी, निषिधपर्वत पर बाईस हजार पांच सौ चालीस कोड़ा-कोड़ी, विदेह क्षेत्र में पैंतालीस हजार एक सौ बीस कोड़ा-कोडी, नील पर्वत पर बाईस हजार पाँच सौ साठ कोड़ा-कोड़ी, रम्यक क्षेत्र में ग्यारह हजार दो सौ अस्सी कोड़ा-कोड़ी, रुक्मि पर्वत पर छप्पन सौ चालीस कोड़ा-कोड़ी, हैरण्यवत् क्षेत्र में अट्ठाईस सौ बीस कोड़ा-कोड़ी, शिखरी पर्वत पर चौदह सौ दस कोड़ा-कोड़ी, ऐरावत क्षेत्र में सात सौ पाँच कोड़ा-कोड़ी तारे जानने चाहिए। ये सब ज्योतिष देव मेरु पर्वत से ग्यारह सौ इक्कीस योजन परे-परे प्रदक्षिणा रूप निरन्तर गमन करते रहते हैं। उनके गमन से समय विभाग अर्थात् घड़ी, पल, दिन, रात्रि आदि का व्यवहार सूचित होता है और उनकी चाल पर गणित करने से प्राणियों के सुख दुःख का बोध करते हैं। मनुष्य लोक के अर्थात् मढ़ाई द्वीप और दो समुद्रों के चन्द्र, सूर्य, ग्रह, नक्षत्र आदि पांच प्रकार ज्योतिष देव तो मेरु की प्रदक्षिणा रूप गमन करते हैं और मनुष्य लोक के बाहर जो चन्द्रमा, सूर्य, आदि जो ज्योतिष देव हैं वे गमन नहीं करते अर्थात जहाँ के तहौ स्थित रहते हैं। अढाई द्वीप में भी बहत से तारे ऐसे हैं जो गमन नहीं करते अर्थात् जहाँ के तहाँ स्थित रहते हैं ! इसी कारण उन्हें ध्रुवतारे कहते है । जो ध्रुवतारे जम्बूद्वीप में छत्तीस, लवण समुद्र में एक सौ उनतालीस, धातको खंड द्वीप में एक हजार दस, कालोदक समुद्र में इकतालीस हजार एक सौ बीस और पुष्कराई ढोप में तरेपन हजार दो सौ तीस हैं। जम्बू द्वीप में दो लवणसमुद्र में चार, धातकी खंड द्वीप में बारह, कालोदक समुद्र में बयालीस, पुष्कर द्वीप में बहत्तर चन्द्रमा और इतने ही सूर्य हैं। ___ यहाँ तक पढ़ाई द्वीप है । मानुषोत्तर पर्वत से परे पर्द्ध पुष्कर भाग में एक हजार दो सौ चौसठ चन्द्र हैं और पुष्कर समुद्र में ग्यारह हजार दो सौ चन्द्र हैं उससे आगे-आगे से समुद्र से चोगुणे समुद्रों में
SR No.090292
Book TitleNamokar Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeshbhushan Aacharya
PublisherGajendra Publication Delhi
Publication Year
Total Pages427
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size14 MB
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