SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 343
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३२० णमाकार ग्रंप तीजे चौथे काल मझार, पंचम में दीसे बढ़वार । विविध कुदेव कुलिंगी लोग, उत्तम धर्म नाश के जोग ॥६॥ सवर बिलाल भील चंडाल, नाहलादि कुल में विकराल । कलकी उपकलको कलिमाहि, बयालीस ह मिथ्या नाहि ॥६॥ अनावृष्टि अतिवृष्टि विख्यात, भूमि वृद्ध बज्रांगन पात । ईत भीति इत्यादिक दोष, काल प्रभाव होम दुप कोप ।।१०।। वोहा यों लोक प्रक्षिप्त में, कथन किया बुधराज । सो भविजन प्रब धारियों, संशय मेटन काज ॥ इस प्रकार संक्षेप में चौथे काल का वर्णन किया। चौथे काल के पीछे जो दुःखमा काल पाता है उसको पंचमकाल भी कहते हैं । इस काल के पाने से पहले ही तीर्थकर आदि मोक्ष को पधार जाते हैं। इस कलिकाल में गोक्षमार्ग की प्रवृत्ति नहीं रहती और धर्म सम्बन्धी रुचि का भी दिनोंदिन ह्रास होता चला जाता है। प्रायु, काय, बल, विद्या और पराक्रम भी दिनोंदिन घटते जाते हैं। इस काल में प्रारमें मनुष्य को प्रापुरकड पीस वर्ष उत्कृष्ट होती है और शरीर सान हाथ प्रमाण होता है । इस काल के आदि में सिद्धार्थ नन्दन भगवान महावीर स्वामी के निर्वाण होने के पानन्तर बासठ वर्ष तक तो केवलज्ञान रूपी सूर्य का उदय बना रहा, बाद में केवलज्ञान रूपी दिवाकर के ग्रस्त होने से धनकवली रूप दिनपति का प्रकाश रहा। तद इसका भी प्रभाव होकर श्री बीर निर्वाण के ६८३ वर्ष पीछे तक अंगज्ञान की प्रवृत्ति रही। उपरान्त इस विकराल काल दोष से वह भी लुप्त हो गई। इसका विशेष वर्णन इस प्रकार है-इस दुःखम पंषम काल के प्रागमन से तीन वर्ष साढ़े पाठ महीने पहले ही कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी को महावीर स्वामी परमधाम मोक्ष पधारे। भगवान के निर्वाण गमन के साथ ही श्री इन्द्रभूति अर्थात् गौतम गणधर को केवलज्ञान उत्पन्न हुया और वे बारह वर्ष तक बिहार करके पंचमगति अनन्तकाल स्थाई मोक्ष को प्राप्त हए। उनके निर्माण होत हाथी सुधमोचार्य को लोकालाक के प्रकाशक केवलज्ञान का उदय हया सो उन्होंने भी बारह वर्ष विहार कर मन्तिम गति पाई और तत्काल अन्तिम केवली श्री जम्बू स्वामी को केवलज्ञान सूर्य का उदय हुआ। उन्होंने अड़तीस वर्ष विहार करके संसार के ताप से सन्तप्त प्रनेक भव्य जीवों को परम पवित्र धर्मोपदेशामृत की वर्षा से शांत कर संसार के दुःखों से छुटाकर सुखी बनाया और अन्त मैं मोक्ष महल को प्रयाण किया। इन तीनों मुनियों ने अनुक्रम से केवलज्ञान रूप दिवाकर का उदय बना रहा परन्तु इनके निर्वाण गमन के पश्चात् ही उसका अस्त हो गया । जम्बू स्वामी के निर्वाण के अनन्तर श्री विष्णु मुनि सम्पूर्ण श्रुतज्ञान के पारगामी श्रुतकेवली (द्वादशांग के धारक) हुए और इसी प्रकार से नंदिमित्र अपराजित, गोवद्धन और भद्रबाहु ये चरर महामुनि भी अशेष श्रुतसागर के पारगामी हुए। उक्त पांचों श्रुतकेवली सौ वर्ष के अन्तराल में हुए अर्थात् भगवान को मुक्ति के पश्चात् बासठ वर्ष में तीन केवली पौर तदनन्तर सौ वर्ष के अन्तराल में पांच श्रुत केली हुए। इनके भी परलोक निवास करने पर विशाखदत्त, प्रौष्ठिल, क्षत्रिय, जयसेन, नागसेन, सिद्धार्थ, वृतिषण, विजयसेन, बुद्धिमान, गंगदेव और
SR No.090292
Book TitleNamokar Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeshbhushan Aacharya
PublisherGajendra Publication Delhi
Publication Year
Total Pages427
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy