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________________ णमाकार ग्रंथ सूचना:-ये सब नव निधियां चक्रवर्ती के पुण्य के प्रभाष से स्वतः उत्पन्न होती हैं। ये सब पाठ चक्र संयुक्त, गाड़ी के आकार धोखूटी, पाठ योजन ऊँची, नव योजन चौड़ी और बारह योजन लम्बी प्राकाश में निराधार रहती हैं।' इस प्रकार वर्तमान काल के बारह चक्रवतियों का वर्णन किया । प्रागे नव नारायणों का वर्णन लिखते हैं :ये चक्रवर्ती से अर्द्ध वैभव के धारी होते हैं । इनके अठारह हजार प्रमाण रानियां होती हैं और एक मार्यखंड एवं दो म्लेच्छ खंड--ऐसे तीन खंडों का ये निष्कंटक नीतिपूर्वक राज्य करते हैं। चक्रवर्ती के चक्र तो आयुधशाला में उत्पन्न होता है परन्तु नारायण के यहां नहीं। यह चक्र प्रतिनारायण की आयुषशाला में प्रादूर्भूत होता है। जब इनका विशेष कारण पाकर परस्पर संग्राम होता है तब प्रतिनारायण युद्ध के समय नारायण को मारने का और कुछ उपाय न देखकर उस पर चक्र चलाता है परन्तु पुण्य के प्रभाव से चक्र उनकी प्रदक्षिणा देकर उनके हाथ में आ जाता है और पुण्य के विचित्र प्रभाव से उन्हीं का प्राज्ञाकारी हो जाता है। फिर नारायण उसी चक्र को अपने प्रतिनारायण पर चलाता है तो वह उसको धाराशायी करके उल्टा नारायण के हाथ में आ उपस्थित होता है । इस चक्र रत्न के साथ और भी जो छह रत्न होते हैं वे भी इन्हीं को प्राप्त हो जाते हैं और इनका ही उन पर स्वामित्व हो जाता है। इस प्रकार नियम से ही प्रतिनारायण की मृत्यु नारायण के द्वारा ही होती है और राज भोग में ही लवलीन होकर आतध्यान से भरण करने से प्रतिनारायण और नारायण दोनों नियम से मरकगामी होते हैं । इस वर्तमान काल में जो नारायण हुए हैं उनके नाम इस प्रकार हैं : (१) प्रथम नारायण त्रिपृष्ट-ये श्री श्रेयांस नाथ भगवान के समय में हुए। इनका शरीर प्रमाण---अस्सी धनुष । प्रायु प्रमाण-चौरासी लाख वर्ष। उसमें कुमार काल-पच्चीस हजार वर्ष । दिग्विजयी काल-एक हजार वर्ष । त्रिखंड राज्य काल-८३ लाख ७४ हजार वर्ष आयु के अन्त में प्रार्तध्यान से मरणकर तमाप्रभा वा मघवी नामक छठी नरक में गए। (२) दूसरे नारायण द्विपृष्ट-ये श्री वासुपूज्य भगवान के समय में हुए। इनका शरीर प्रमाण-सत्तर धनुष । प्रायु प्रमाण बहत्तर लाख वर्ष, उसमें कुमार काल-पच्चीस हजार वर्ष । महा. मंडलेश्वर पद राज्य काल-पच्चीस हजार वर्ष । दिग्विजय काल-सौ वर्ष । अर्द्ध चक्रीपद राज्य काल -इकहत्तर लाख उन्नचास हजार नव सौ वर्ष एवं बहत्तर लाख वर्ष आयु के अन्त में मरकर छठवें नरकगामी हुए। (३) तीसरे नारायण स्वयंभू-ये श्री विमननाथ भगवान के समय में हुए । इनका शरीर प्रमाण -- साठ घनुष । प्रायु प्रमाण-साठ लाख वर्ष, उसमें कुमार काल--पच्चीस सौ वर्ष । महामंडलेश्वर पद राज्य काल-पच्चीस सो वर्ष दिग्विजय काल-नब्बे वर्ष । त्रिखंड राज्यकाल-५६६४१० वर्ष एवं साठ लाख वर्ष की प्राय के अन्त में मरकर छठे नरकगामी हए। (४) चौथे नारायण पुरुषोत्तम श्री अनन्तनाथ भगवान के समय में हुए। इनका शरीर प्रमाण-पचपन धनुष । प्रायु प्रमाण-तीस लाख वर्ष, उसमें कुमारकाल-सात सौ वर्ष । मंडलेश्वर पद राज्य काल-तेरह सौ वर्ष । दिग्विजय काल--अस्सी वर्ष । त्रिखंड राज्यकाल-२६६७६२० वष एवं तीस लाख वर्ष की आयु के पन्त में मरण कर छठे नरकगामी हुए। (५) पांचवें नारायण पुरु सिंह-ये श्री धर्मनाथ भगवान के समय में हुए । इनका शरीर प्रमाण-चालीस धनुष । मायु प्रमाण-दस लाख वर्ष उसमें कुमार काल-सीन सौ वर्ष । मंडलीक
SR No.090292
Book TitleNamokar Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeshbhushan Aacharya
PublisherGajendra Publication Delhi
Publication Year
Total Pages427
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size14 MB
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