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________________ ३१२ णमोकार ग्रंथ योहा:.... राज अंग चौदह रतन, विविध भांति सुखकार । जिनकी सुर सेवा करें, पुन्य तरोवर डार ।।६।। चक्र छन असि दंड मणि, चर्म काकिनी नाम । सात रतन निरजीव से, चक्रवति के धाम ||१०|| सेनपतिग्रहपति थपत, प्रोहित नाम तुरंग । बनिता मिल सातो रतन, ये सजीव सरबंग ॥११|| चक्र छत्र असि दंड ए, उपजे आयुध थान । चर्म कांकिनी मिल रतन, श्री ग्रह उपपति जान ॥१२॥ गज तुरंगतिय तीन ए, रूपाचल पं होत। चार रतन बाकी विमल, निज पुर लहें उदोत ।।१३।। 'अर्थ: - सुदर्शनचक्र (१), चंडबेग नामक दंड (२), चर्म रत्न (३), चूड़ामणिरत्न (४), कांकणी रत्न (५), सूरजप्रभनामक छत्र (६), नंदक नामक असिरत्न (७), अजोधनाम सेनापति रत्न (८), बुद्धि सागर नामक...प्रोहित रत्न (E), स्थापितभद्रमख शिल्पि रत्न (१०), काम वृद्धि गृहपतिरत्न (११), विजया गिरनायक हस्ती रत्न (१२), पवनंजय नामक, अश्व (१३), सुभद्रा नामक स्त्री रत्न (१४), इस प्रकार चौदह रतन हैं इन एक-एक रत्नों की एक-एक हजार देव सेवा करते हैं। अब इन रत्नों से क्या क्या कार्य सिद्धि होती है वह कहते हैं चक्रवर्ती जिस पर अपना शासन करने की अभिलाषा करता है, उसके निकट चक्र के रक्षक देव जाकर चक्रवर्ती की प्राज्ञा करते हैं ये चक्ररत्न का कार्य है ।१। विजयास पर्वत के गुफा के कपाटों का खोलना-ये चंडवेग नामक रल का कार्य है ।२। सेना सहित चक्रवति को प्रयाण करते हुए मार्ग में कहीं पर नदी सरोवरादिक का अगाध जलाशय मा जाए तो वहां पर धर्म रत्न बिछा देने से थल के समान हो जाता है जिससे समस्त कटक पार हो जाता है, ये चर्मरत्न का कार्य है ।३। विजयापपर्वत को गुफा पचास योजन लम्बी है, इस कारण उसमें महामंधकार है। चक्रवति जब उसमें प्रवेश करता है तो चूड़ामणि के उद्योत से सूर्यबत् प्रकाश हो जाता है, जिससे चक्रवर्ति निःखेद गुफा के पार चला जाता है, ये चूडामणि रत्न का कार्य है ।।४।। चक्रवति जब बृषभाचल पर्वत पर आता है तब कांकणी रतन से उस पर लिखे हुए पूर्व चक्रवति का नाम मिटा कर अपना नाम लिख देता है, और इसके उद्योत से भी गुफा में १२ योजन पर्यंत प्रकाश हो जाता है ये कांकणी रत्न का गुण है ।१५|| चक्रवति के कटक पर जब मेध वर्षा होती है तब छत्र रत्न के छा लेने से मेघ वर्षा कृत बाधा नहीं होती ये छत्र रत्न का गुण है ।।६।। जिसके तेज के दर्शन मात्र से शत्रुओं का हृदय कांप जाए और अपने तेज शत्रुओं को प्राशानुवर्ती करने वाला ऐसा नंदक नामक प्रसिरत्न का गुण है ।।७।। ये सात रत्न अचेतन जानने चाहिए। समस्त आर्य मलेच्छ खंड के राजाओं को जीत कर चक्रवति के शासनानुवर्ती चरण सेवक बनाए ये प्रजोधनाम सेनापति रत्न का गुण है ॥६॥ चक्रवति की प्रजा को सुख और आनंद की दायक, यश प्रगट करने वाली, शत्रुवशीकारक सम्मति देना-सो बुद्धि सागर प्रोहित रत्न का कार्य है ॥६॥ चक्रवर्ति की इच्छानुसार शासन करते ही तत्क्षण अनेक क्षण के चित्रामादि संयुक्त महा मनोहर महल तैयार
SR No.090292
Book TitleNamokar Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeshbhushan Aacharya
PublisherGajendra Publication Delhi
Publication Year
Total Pages427
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size14 MB
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