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________________ णमोकार प्रय विकट बच तुडा अभिधान, शत्र खंडनी शक्ति जान । सिंहासक बरछी विकराणा, रतन दंड लामो रिपुकाल ।। २१ ।। लोह बाहिनी तीषन छुरी, जिम चमके चपला दुति भरी। ये सब वस्तु जात भूमहि, चक्री छ्ट और घर नाहिं ।। २२ ।। प्रानन्द भेरी दश अक दोष, बारह योजन लो धुनि होय ।। बच्च घोप फुनि जिन को नाम, बारह पटह नृपति के धाम ।। २३ ॥ वस्त्र गभीरावर्त गरीस. शोमन रूख शंख चौबीस । नाना वरन ध्वजा रमनीय, अड़तालोस कोट मितकीय ।। २४ ॥ इत्यादिक बहु बस्तु अपार, वर्णन करत लग वहुवार । महल तनी रचना असमान, जिनमत कही सु लीजो जान ।। २५ ।। ---इत्यादि अनेक प्रकार की विभूति सहित चक्रवर्ती होते हैं । प्रगट रहे कि चक्रवति के छियानवे हजार रानियां होती हैं, जिनमें चक्रवर्ती तो केवल एक स्त्री से ही संभोग करता है, अवशेष स्त्रियों से चक्रति की विक्रिया शक्ति से प्रादर्भत रानियों की संख्या के समान कृत्रिम पूतले संभोग करते हैं। वे पुतले चक्रवर्ती की प्राकृति के समान ही होते हैं, जिससे रानियों को पुतले और चक्रवर्ती में भेद ज्ञान नहीं होता है। दूसरे ये भी प्रगट रहे कि चक्रवर्ती के षट् प्रकार को सेना होती है और सामान्य राजाओं के चार प्रकार की होती है । उनके देव विद्याधर नहीं होते हैं। ये छह प्रकार की सेना इस प्रकार होती है-(१) समस्त दोनों श्रेणी के विद्याधरों की सेना (२) भरतक्षेत्र सम्बन्धी देवों की सेना । (३) पयादों की सेना । (४) रथ सेना चौरासी लाख 1 (५) हाथी सेना चौरासी लाख । (६) घोटक सेना, पठारह करोड़। ऐसे सेना संख्या बतलाकर प्रागे षठखण्डाधिपति चक्रवति के पुण्य के महात्म्य से चौदह रत्न होते हैं उनके नाम और गुण लिखते हैं। चौपाई :-प्रथम सुदर्शन चक्रपसछ, छहों खंड साधन समरछ । चंडवेग दिढ़दंड दुतीय, जिस बल खुले गुफा गिरकीय ॥१॥ चर्मरतन सों तृतीय निवेद, महाबन मय नीर प्रभेव । चतुर्थचुडामणि मणिरेन, अंधकार नाशक सुख देन ॥२॥ पंचम रतन कांकनी जान, चिंतामणि जाको अभिधान । इन दोनों तें गुफा मझार, शशि सूरज लखिए निरधार ॥३॥ सुरज प्रभशुभ क्षत्र महान, सो अति जगमगायज्यों भान । सो नंदक प्रति अधिक प्रचंड, डरे देश शत्रु बलवंड ॥४॥ पुनि प्रजोध सेनापति सूर, जो दिग्विजय करै बलभूर । बुधि सागर प्राहित परवीन, बुद्धि मिधान विद्यागुणलोन ॥५।। थपतिभद्रमुख नाम महत, शिल्पकला को विदगुणवंत । कामवृद्धि गृहपति विख्यात, सव ग्रह काज करै दिनरात ॥६॥ प्याल विजय गिर प्रति अभिराम, तुरंग तेज पवनंजय नाम । वनिता नाम समुद्रा कही, चूरै बज्रपान सों सही ॥७॥ महादेव बल धार सोय, जा पटतर तिया और न कोय । मुख्य रतन ये चौदह जान, और रतन को कौन प्रमाण ||८||
SR No.090292
Book TitleNamokar Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeshbhushan Aacharya
PublisherGajendra Publication Delhi
Publication Year
Total Pages427
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size14 MB
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