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________________ णमोकार प्रथ हैं । ये सब भावों पर निर्भर है। ज्यों-ज्यों राग द्वेषादिक प्रभावों की मंदता होती जाएगी, त्यों-त्यों अपने स्वभाव की प्राप्ति होकर अन्तिम साध्य मोक्ष के निकट पहुंचता जाएगा, परन्तु यह भी पूर्णध्यान मैं रखना चाहिए कि मोक्ष लाभ होगा मुनि धर्म से ही ग्रहस्थ धर्म से नहीं । ३०४ इसके अतिरिक्त गणधर देव ने भगवान से तीर्थंकर वलदेव, चक्रवर्ती, बासुदेव, प्रतिवासुदेव होने की बात पूछी मर्थात् ये उच्च पद कैसे प्राप्त कर सकते हैं और ऐसे कौन से कर्म हैं कि जिनके द्वारा आत्मा को गहन संसार बन में दुर्गतियों के दुख सहने पड़ते हैं। भगवान ने सब प्रश्नों का यथोचित सविस्तार वृतांत कह सुनाया । इस प्रकार भगवान का सदुपदेश सुनकर कितने हो भव्यों ने महाव्रत ग्रहण किये। बहुतों ने मणुव्रत धारण किये । कितनों ने केवल सम्यक्त स्वीकार किया मौर कितनों ने भगवान के पूजन करने की ही प्रतिज्ञा की। कमठ के जीव ज्योतिषी देव ने भी भगवान के धर्मोपदेशामृत का पान कर मिथ्यात्व के परित्यागपूर्वक सम्यक्त्व स्वीकार किया । और भी वहाँ निकटस्थ पंचाग्नि तप तपने वाले सात सौ तापसियों ने भगवान के प्रतिशय से समवशरण में आ मिथ्यात्व तज सम्यक्त्व ग्रहण किया। इस प्रकार मनेक जीवों का उद्धार कर भगवान दूसरे देशों में विहार कर गए। भगवान के समवशरण में स्वयंभू प्रमुख दशगणधर । चौदह पूर्व के पाठी ३५० माचरांग सूत्र के पाठी शिष्य मुनि १०६०० | अवधिज्ञानी मुनि १४०० । केवलज्ञानी १००० विक्रिया ऋद्धिधारी मुनि १००० । मन:पर्ययज्ञानी मुनि ५० । वाद विजयी मुनि ६०० । इस प्रकार समस्त १६००० मुनि हुए। और छतीस हजार श्रर्जिका, एक लाख श्रावक और पुण्य चूड़ा प्रमुख तीन लाख श्राविकाएं हुई और श्रसंख्यात देव देवगाना तथा संख्यात पशु सम्यक्ती हुए। इस प्रकार द्वादश सभा सहित विहार करते भगवान सम्मेद शिखर पर आए। वहां एक महीने का योग निरोधकर प्रयोग गुणस्थान को प्राप्त हो श्रावण शुक्ल 13 की रात्रि के समय कायोत्सर्गासन द्वारा सम्मेद शिखर सुवर्णभद्र कूट से परमधम मोक्ष पधारे । इनके मुक्ति गमन समय और भी ६२०० मुनि साथ मोक्ष गए। समवशारण से समस्त पांच सौ छत्तीस मुनि मोक्ष गए। ॥ इति श्री पार्श्वनाथ तीर्थंकरस्य विवरणम् ।। ear सम्मेद शिखर वर्णन श्री सम्मेद शिखर पर्वत पर सबसे ऊँची टोंक पूर्व दिशा में श्री चन्द्रप्रभु भगवान की है और पश्चिम दिशा में सबसे ऊंची टोंक श्री पार्श्वनाथ की है। इस पर्वत से बीस तीर्थंकर और प्रसंख्यात केवली परमधाम मोक्ष सिधारे हैं। इस पर्वत पर चोबीस तीर्थंकरों को चोवीस ही टोंक हैं। यद्यपि मादि धर्मोपदेशक श्री आदिनाथ भगवान का निर्वाण क्षेत्र कैलाश पर्वत श्री वासुपूज्य भगवान का चंपापुरी वन अन्तर्गत चंपातालतट, मदन विजयी श्री नेमनाथ भगवान का गिरनार पर्वत, अन्तिम तीर्थकर सिद्धार्थ नन्दन अर्थात महावीर स्वामी का पावापुर वन अन्तर्गत पद्म सरोबर तट निर्वाण क्षेत्र हैं और अवशेष बीस तीर्थंकरों का निर्वाण क्ष ेत्र सम्मेद शिखर है परन्तु यहाँ से सीर्थंकर मोक्ष होने पर चौबीस करों की चौबीस टोंक होने का कारण यह है कि... इस भरत क्ष ेत्र उत्सर्पिणी और अवसर्पिणी नाम के दो काल उन्नति, अवनति के कारण एक मास में ही शुक्ल कृष्ण पक्षवत् प्रवर्तते रहते हैं जिनमें निरन्तर जीवों के शरीर की ऊंचाई और आयु में न्यूनाधिकता हुआ करती है ।
SR No.090292
Book TitleNamokar Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeshbhushan Aacharya
PublisherGajendra Publication Delhi
Publication Year
Total Pages427
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size14 MB
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