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________________ २६८ णमोकार दम घबरा कर बोले क्या कोई दैत्य तो नहीं भा गया। तब उनके किसी सेवक ने श्री कृष्ण से कहा चौपाई... हे स्वामी मुग्धा सतभाम, नहीं जने बुदवारथ नाम । मान तनो पट श्री जिन दियो, ताकी नहीं नीचोरन कियो । और गर्व कर कहती भई, हे कुमार तुम सुनिए सही । धनुष शंख श्रहि शय्या तीन, क्या तुमने साधन कीन ।। जो मैं पोत निचोहू एष, इस विधि वच सुन जिन वर देव । रोकर सिन करते भए, या विच सेवग ने बच गए || सुनते ही श्री कृष्ण उसी समय युद्ध शाला में आए और ऊपर से कुछ हँस कर भाई नेमिनाथ से बोले - विभो ! आप के किंबित क्रोध से बेचारे लोग विह्वल हुए जाते हैं। प्रतएव केवल स्त्रियों के वचनों पर आपको ऐसा करना उचित नहीं जान पड़ता। आप कोध का परित्याग करें। क्योंकि यह उत्तम पुरुषों के लिए आदरणीय नहीं है ।' भगवान् को सन्तुष्ट कर श्री कृष्ण उनसे मिले। और उन्हें साथ ले अपने घर चले गए। नेमिनाथ के इस अनुपम पराक्रम को देखकर श्री कृष्ण मानसिक व्यथा से बहुत दुखी हुए। तदनतर श्री कृष्ण बलदेव के पास पहुंचे और कहा कि 'नेमिनाथ बड़े बलवान हैं । सम्भव है कि कभी भी मेरा राज्य छीन लें । बतलाइए क्या उपाय करना चाहिए। मेस राज्य सुरक्षित रह सके ।' तब बलदेव ने कहा- 'भाई ! वे धर्म शरीर के घारी, जगदगुरु व त्रिलोक पूज्य हैं। उन्हें इस महा अवकारी राज्य संपदा से क्या प्रयोजन । वह तो इसे तुच्छ दृष्टि से देखते हैं। जहां कोई उन्हें हिंसा का कारण दिखाई पड़ेगा तो वे तत्काल संसार से विरक्त हो दीक्षा ले लेंगे ।' बलदेव के इस प्रकार के वचन सुनकर कृष्ण भी उसी तरह के उपाय के बोजना की चिन्ता में लग गए। अन्त में दूसरा कोई उपाय न देखकर उग्रसेन की नगरी में पहुंचे। उग्रसेन से कुशलवार्ता के प्रनन्तर श्री कृष्ण ने नेमिनाथ के साथ राजीमती के विवाह होने की बात छेड़ी। उग्रसेन ने श्री कृष्ण का कहना स्वीकार कर अपनी पुत्री का विवाह नेमिनाथ से करना निश्चित कर दिया। श्री कृष्ण लग्नादि का निश्चय कर आये और जूनागढ़ में जीव वध के विषय की भी गुप्त मंत्रणा कर पाये थे । इतने में वर्षा काल आ गया। उन्हीं दिनों में नेमिनाथ का विवाह सम्बन्धी कार्य प्रारम्भ किया गया। सगे सम्बन्धी जन निमन्त्रण पत्र भेज कर बुलवाए गये। आये हुए पाहनों का भोजनादि से खूब सत्कार किया जाने लगा । थोड़े ही दिनों में नेमिनाथ की बरात खूब सजधज कर बड़े समारोह और वैभव के साथ जूनागढ़ में पहुंची वहां पर एक संकीर्ण स्थान में मृगादिक अनेक प्रकार के बहुत से पशु बंधे हुए थे और ये वेचारे घोर धापति में फंस कर करुणाजनक शब्द कह रहे थे। उन्हें कप्ट से व्याकुल देखकर नेमिनाथ को बड़ी दया था। तब उन्होंने घपने सारथी से पूछा -- ये पशु क्यों बिलबिला रहे हैं और क्यों इकट्ठ किए गये हैं।' सारथी ने उत्तर में निवेदन किया- महाराज ! आपके विवाह में जो मांसाहारी राजा पाहुने आये हैं उनके भोजन के लिए इनका बघ किया जाएगा। इसी प्रयोजन से एकत्रित करके ये यहां बाघ गए हैं । E
SR No.090292
Book TitleNamokar Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeshbhushan Aacharya
PublisherGajendra Publication Delhi
Publication Year
Total Pages427
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size14 MB
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