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________________ २०६ णमोकार ग्रंथ चले जाने के भक्ति से नमस्कार करके देव देवांगनाओं सहित अपने स्थान पर चला गया। इन्द्र के पश्चात् समुद्रविजय ने भी बहुत उत्सव किया और दान दिया। पूजा प्रभावना की । बन्धु बान्धवों को परम आनन्द हुआ | भगवान शुक्ल द्वितीया के चन्द्रमा की तरह दिनोंदिन बढ़ने लगे । सुन्दरता में भी कामदेव को जीतते थे। इनके बल के सम्बन्ध में तो कहना ही क्या था। जबकि वह चरम शरीर के धारी इसी भव में मोक्ष जाने वाले हैं। भगवान नेमिनाथ के द्वारा भेजे हुए दिव्य वस्त्राभूषणों का उपयोग करते तथा अपनी समान बय वाले देवकुमारों के साथ माता-पिता के नेत्रों को प्रानन्द देने वाली बालकोड़ा करते हुए दिनोंदिन बढ़ने लगे । तथाप्युक्तं नेमिनाथ पुरणे तीन जगत करि पूज्य नेमि सुख से तिष्ठते, देव इन्द्र सब सुरी युक्त प्रानश्वयते । स्वर्ग विषै उत्पन्न वस्त्रभूषण नित लाकर, महा भक्तिन ला सेव कर हैं निसवासर ॥ तीन काल किंकर भये, प्रीति सहित सेवंत । षट् ऋतु के जो सुख नये, ताकरि हर्ष करत ॥ १ ॥ रत्नन के प्रांगन विषे, देव कुमारन संग | नाना विधि क्रीड़ा करत, सुख से नाथ अभंग ॥२॥ यो कोड़ा जगचित्त को, दायक आनन्द भौत । जो दंपति को मानन्द भयो, ताकी वरने कौन ॥३॥ जिस समय समुद्र विजय र वसुदेव श्रादि मथुरा में रहते थे उस समय श्री कृष्ण ने अपने मामा कसराज को मार कर अपने नाना उग्रसेन को बन्दी गृह से छुड़ा दिया था। कंसराज का श्वसुर जरासिंध उस समय एक बड़ा भारी प्रतापी राजा था। उसे अपने जामाता की मृत्यु का संवाद सुनकर बड़ा क्रोध आया । वह उसी समय बड़ी भारी सेना लेकर यादवों से युद्ध करने के लिए चल पड़ा । यदुवंशियों ने जब यह खबर सुनी कि जरासिंध विपुल सेना लेकर चढ़ा पा रहा है तब ये बहुत घबराए । सब मिलकर विचार करने लगे कि जरासिंध से युद्ध करना उचित नहीं है क्योंकि हमारे में इतनी शक्ति नहीं है जो जरासिंध से सामना कर सकें। इसलिए ये दूसरा कोई उपाय न देखकर वहां से चल दिए और सौराष्ट्र देश के समीप द्वारिका में अपना उपनिवेश स्थापित करके रहने लगे । लिखा है कि द्वारिका की रचना जिन भगवान की भक्ति और श्री कृष्ण के वहां आने से इन्द्र की आज्ञा से देवों ने की थी। नैमिकुमार का जन्म द्वारिका में हुआ। श्री कृष्ण नेमिकुमार के चचेरे भाई थे तथा नेमिकुमार से भवस्था में बड़े थे । कुछ समय में कृष्ण एक प्रतापी राजा हो गए । तथा द्वारिका को अपनी राजधानी बना कर निष्कंटक राज्य करने लगे। श्री कृष्ण का सत्यभाका आदि सोलह हजार राजकुमारियों से विवाह हुमा । इनके साथ श्री कृष्ण के दिन बहुत ही सुख पूर्वक बीतते थे । अथान्तर शीत ऋतु व्यतीत होने पर बसन्त ऋतु का ग्रागमन हुआ । सरोबरों का जल स्वच्छ हुआ | कमल विकसित हुए। सरोवरों की शोभा बढ़ने लगी । प्राम्र के वृक्षों पर प्यारे भरे मा गए । कोकिलामों की सुन्दर कंठध्वनि होने लगी। ऐसे सुखपूर्ण दिनों में श्रीकृष्ण प्रपने अंतःपुर सहित वन .
SR No.090292
Book TitleNamokar Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeshbhushan Aacharya
PublisherGajendra Publication Delhi
Publication Year
Total Pages427
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size14 MB
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