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________________ णमोकार अभ २६३ प्रथम हस्ती के देखने से सर्वोच्च माननीय पुत्र होगा ? वृषभ के देखने से धर्म रूपी धुरी का धारण करने वाला जगन्यूज्य होगा ।।२।। सिंह के देखने से अनन्त बल का धारी होगा । ३ । पुप्पमाला देखने से धर्म प्रगट करने वाला होगा । ४ । लक्ष्मी अभिषेक हस्तिनियों के द्वारा होता हरा देखने से उनका इन्द्रों के द्वारा मेरु पर्वत पर अभिषेक होगा।५। पूर्णमासी का प्रखंड चंद्र बिम्ब देखने में वह सब जन संताप हा मानन्दकारी होगा। ६ । सूर्य के देखने से बह महा प्रापी होगा। ७ । मीन युगल देखने से वह विविध मुख का भोक्ता होगा । ८ । कनक कुम्भ युगल देखने से वह विविध निधि भोक्ता होगा । ६ । सरोवर के देखने से वह एक हजार पाठ शुभ लक्षण सम्पन्न होगा । १० । गम्भीर समुद्र के देखने से केवल ज्ञान धारी होगा । १२ । सिंहासन के देखने से विपुल राज्य का भोक्ता होगा । ११ । स्वगं विमान देखने से स्वर्ग से चयकर अवतार लेगा। १३ । घरणेन्द्र भवन देखने से प्रवधिज्ञान संयुक्त होगा। १४ । रत्नराशि देखने से गुण निधान होगा। १५ । निधूम अग्नि देखने से वह कर्मों का नाश करने वाला होगा। १६ । इस प्रकार मरुदेवी त्रैलोक्य नाथ की उत्पत्ति अपने पति से सुनकर परम हर्षित होकर वापिस अपने महल में चली गई। कुछ दिनों पश्चात् प्राषाढ़ कृष्ण द्वितीया को सर्वार्थ सिद्धि से चयकर तीन ज्ञान संयुक्त भगवान मरुदेवी के गर्भ में प्रा विराजे । देवों के द्वारा उस पूज्य गर्भ की दिनों-दिन वद्धि होने लगी। उसके भार से मरदेवी को किसी तरह की पीड़ा न हुई जैसे दर्पण में प्रतिबिम्ब के पड़ने से दपणं की किसी तरह हानि नहीं होती है । गर्भ पूर्ण दिनों का हुआ। तब चैत्र मास कृष्ण पक्ष में नवमी के दिन शुभ मुहूर्त में उत्तरापाढ़ नक्षत्र का योग होने पर सौभाग्यवती मरुदेवी ने त्रिभुवन पूज्य पुत्ररत्न का प्रसव किया। पुत्र के उत्पन्न होते ही नगर भर में मानन्द उत्सव होने लगा और नाभिराय ने भी पुत्र जन्म का महा उत्सव किया । त्रैलोक्य के प्राणी हषित हुए। इन्द्रों के पासन कम्पायमान हुए और देवों के बिना बजार स्वनः स्वभाव सुन्दर-सुन्दर बाजों का मनोहर शब्द होने लगा तब सौधर्मेन्द्र प्रवषिशान से यह जानकर कि इस समय भरत क्षेत्र में तीर्थराज का अवतार हुआ है। उसी समय अपने ऐरावत गजराज पर प्रारूढ़ होकर वह अपनी इन्द्राणी और देवों सहित बई भारी उत्साह और समारोह के साथ प्रयोध्यापुरी में पाया और सक्ति नगरी की तीन प्रदक्षिणा की। इन्द्र ने अपने विशाल ऐश्वर्य से नगरी को अनेक प्रकार सुशोभित किया और पश्चात् अपनी प्रिया को भगवान के लाने के लिए मरुदेवी के निकट भेजा। इन्द्राणी अपने स्वामी की आज्ञा पाकर प्रसूतिगृह में गई और अपनी दिव्य शक्ति से ठीक मायामयी वैसा ही एक बालक वहाँ स्थापित कर भगवान को उठा खाई।
SR No.090292
Book TitleNamokar Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeshbhushan Aacharya
PublisherGajendra Publication Delhi
Publication Year
Total Pages427
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size14 MB
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