SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 285
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २१२ णमोकार मय सातवें कुलकर का शरीर प्रमाण सात सौ धनुष था। इन्होंने घोड़े, रथ प्रादि सवारियों पर प्रारुढ़ होना सिखलाया ।७४ आठवें कुलकर का शरीर प्रमाण छह सौ पिचहत्तर धनुष था। इन्होंने जो लोग अपने पुत्र का मुख देखने से भयभीत हुए थे उनका भय निवारण किया ।। नवे कुलकर का शरीर प्रमाण छह सौ पचास धनुष था। इन्होंने लोगों को पुत्र-पुत्रियों के नामकरण की विधि बतलाई ।। दसर्वे कुलकर का शरीर प्रमाण छह सौ पच्चीस धनुष था। इन्होंने लोगों को चन्द्रमा दिखलाकर बच्चों को क्रीड़ा करना सिखलाया।१०। __ ग्यारहवें कुलकर का शरीर प्रमाण छह सौ धनुष था। इन्होंने पिता पुत्र के व्यवहार की शिक्षा दो सान सोगों को हिलाल यादि मह तुम्हान है. तुम इसके पिता हो।११। बारहवें कुलकर का शरीर प्रमाण पांच सौ पिचहतर धनुष था। इन्होंने नदी, समुद्र आदि में नौका और जहाजों के द्वारा पार जाना, तैरना सिखाया। १२ । तेरहवें कुलकर का शरीर प्रमाण पांच सौ पचास धनुष था। इन्होंने लोगों को गर्भ मल के शुद्ध करने का अर्थात् स्नान आदि कर्म का उपदेश दिया । १३ । चौदहवें कुलकर का शरीर प्रमाण पांच सौ पच्चीस धनुष था । इन्होंने लोगों को नाभि काटने की विधि बताई । १४ । इनके समय समस्त कल्पवृक्षों का प्रभाव हुआ । युगल उत्पत्ति मिटी और वे अकेले ही उत्पन्न हए । इनकी मन को हरण धाली उत्तम पतिव्रता, सरलस्वभावी, विदुषी जैसे चन्द्रमा के रोहिणी, समुद्र न्द के इन्द्राणी हैं वैसे ही महारानी मरु देवी अपने शयनागार में सुखपूर्वक केगंगा, राजहंस के हंसनी इन्द्र के इन्द्राणं सोई हुई थी कि उसने जिनेन्द्र के अवतार के सूचक रात्रि के पिछले पहर में अत्यन्त हर्षदायक सोलह स्वप्न देखे । उनके नाम इस प्रकार हैं-(१) ऐरावत हस्ती, (२) श्वेत वृषभ, (३) केशरी, (४) हस्तिनियों के द्वारा दो कलशों से स्वान करती हुई लक्ष्मी. (५) दो पुरुष मालाए, (६) अखण्ड चन्द्र बिम्ब (७) उदय होता हुआ सूर्य, (८) मीन युगल, (६) दो कनकमय कलश; (१०) कमलों से शोभित सरोवर, (११) गम्भीर समुद्र, (१२) सुन्दर सिंहासन, (१३) छोटे-छोटी घटिकानों से सुशोभित विमान, (१४) धरणेन्द्र का भवन, (१५) प्रदीप्त पंच वर्गों के उत्तमोत्तम रत्नों की राशि और (१६) निधूम अग्नि-इस प्रकार सोलह स्वप्न देखे । तदनन्तर उसने अपने मुख में प्रवेश करते हुए हाथी को देखा ! स्वप्न देखकर मरुदेवी प्रात: काल सम्बन्धी मंगल शब्द श्रवण करके जाग्रत हुई और शौच स्नान प्रादि प्रभात क्रियाओं से निवृत होकर नाभिराय के समीप राजसभा में गई । महाराज ने महारानी को अपने बाई ओर बैठाकर कहाही आज क्या विचार करके प्राई हो?' महारानी बोली ..'नाथ ! रात्रि के अन्तिम समय में मैंने । उनका फल माप से पूछने के लिए प्राई हूँ। यह कहकर मरुदवा न अपन रात्रि म देखे हुए सब स्वप्न कह सुनाए। महाराज स्वप्नों को सुनकर उनका फल कहने लगे-'देवी ! इन स्वप्न से सूचित होता है कि तुम्हारे गर्भ में तीर्थंकर अवतार लेंगे जिनकी प्राज्ञा का देवता तक भी सन्मान करते हैं। उनके अवतार के छह महीने पहले से ही देवता प्रतिदिन अपने घर पर रत्नवर्षा करेंगें । तुम्हारी संतुष्टि के लिए प्रत्येक स्वप्न का फल पृथक-पृषक कहता हूं सो सुनो
SR No.090292
Book TitleNamokar Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeshbhushan Aacharya
PublisherGajendra Publication Delhi
Publication Year
Total Pages427
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy