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________________ णमोकार अंथ भावार्थ-वार-बार अबतार लेना ही संसार है । विष्णु महाराज ने बार-बार परतार धारण किया है पत: वे दुःखी हैं । परन्तु सकल परमात्मा प्रहन्त के दुःख रंचमात्र भी नहीं । दुःख के बीजभूत जो दोष हैं वे स्वप्न में भी उनके पास नहीं पाते हैं प्रतः उन्हें मेरा बारम्बार नमस्कार हो। (८) रोग दोष --कैसा है यह दोष ? इसके होते हुए जीव की घेष्टा प्रति ही व्याकुम रूप हो जाती है और वह सुध-बुध रहित हो जाता है। यह रोग नामक दोष भी शिवजी के था तब व्याकुल होकर धतूरा खाकर उन्होंने रोग शान्त किया। पर यह रोग दोष जिनेन्द्र भगवान के महीं होता। प्रतः उन्हें मेरा बारम्बार नमस्कर हो । (E) शोक दोष-यह दोष भी परहंत के नहीं होता। इष्ट पदार्थों के वियोग होने पर परिणामों में व्याकुलता होना शोक है और सकल परमत्मा प्ररहंत भगवान के सकल पदार्थों में समभाव है अतः उनमें यह दोष भी नहीं है । ऐसे परमात्मा को मेरा बारम्बार नमस्कार हो । (१०) मद अर्थात गर्व दोष--इसे मान भी कहते हैं। कैसा है यह दोष ? यह पर्वत के समान है मान रूपी पर्वत के आश्रय को पाकर जीब अपने आप को भूल जाते हैं और संसार में नीच दिशा को प्राप्त होते हैं । यह मान माठ पदार्थों का प्राश्रय पाकर जीव के हो जाता है। उन अष्ट मद के कारण के नाम इस प्रकार हैं : यथोक्तं रत्नकरण्डश्रावकाचारे श्लोकम् ज्ञानं पूजां कुलं जाति, बलमृद्वितपोवपुः । अष्टावाश्रित्य मानित्वं, स्मयमादुर्गतस्मयाः ॥ अर्थ-शान, पूजा, कुल, जाति, दल, ऋद्धि तप और शरीर की सुन्दरता -इन प्रष्ट पदार्थों के सम्बन्ध से आठ प्रकार का मद हो जाता है। अपनी विद्या का मद--कि मैं बहुत बुद्धिमान हूं, मेरी बुद्धि स्मृति तथा तर्कशक्ति बहुत तीन है। यह ज्ञान मद है। अपनी पूजा अर्थात् प्रतिष्ठा का मद कि मैं सर्वजन प्रतिष्ठित हूं. मुझे सबसे ऊंचा मानते हैं, यह पूजा-मद है । २। अपने कुल का मद है कि जितना ऊंचा मेरा कुल है उतना ऊँचा और किसी का नहीं है सो कुल मद है । ३। "" उच्च जाति का मद कि मैं ब्राह्मण हूं क्षत्रिय हूं वैश्य हूं। मैं तो ऊँची जाति का हूं पोर वह नीच जाति है सो जाति मद है । ४ । बल अर्थात पराक्रम का गर्व कि मैं ऐसा बलवान हूं मेरे समान पोर कोई नहीं । यदि में किसी को एक मुष्टि की चोट लगा दूं तो उसमें ही वह परलोक सिधार जाए। सो बल मर है ।५। अपने तप का मंद कि मैं जैसा तप करता हूं वैसा कोई और तप नहीं कर सकता सो तप मद है। ऋद्धि का मद कि जितना मेरे पास धन तथा ऐयर्य है उतना और किसी के पास नहीं सो ऋद्धि मद हैं।७। बपु अर्थात शरीर की सुन्दरता का मद, कि जैसा मेरा कांतिवान सुन्दर शरीर है ऐसा और किसी का नहीं, सो शरीर के रूप का मद है ।।
SR No.090292
Book TitleNamokar Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeshbhushan Aacharya
PublisherGajendra Publication Delhi
Publication Year
Total Pages427
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size14 MB
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