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णमोकार ग्रंथ
शान्त कर, वृक्षों के बक्कल तथा गेरू प्रादि से रंगे दाहारण कर उन्होंने पानंद काल संसार में परिभ्रमण कराने वाले तीन कर्म का बंध किया। इस क्षुधा के वशीभूत होकर संसार के समस्त प्राणी व्याकुल होकर अच्छे बुरे का ज्ञान खो देते हैं । और जैसे भी बन सके योग्य, अयोग्य कार्य करके अपनी क्षुधा को शान्त करने के लिये पाहार उपार्जन करने का प्रयत्न करते हैं । और कैसी है यह क्षुधा ? इसके वश होकर मनुष्य अपने प्राणों के समान प्रिय इष्ट स्त्री, पुत्र प्रादि को तज देश देशान्तर में प्रति गमन करते हैं। इसके निमित्त मनुष्य चोरी करते हैं और झूठ बोलते हैं । पर जीवन का घात करते हैं और यदि देवयोग से पकड़े जाएँ तो राजारों के द्वारा अनेक प्रकार के खोटे-खोटे दण्ड पाते हैं, पिटते हैं और दुष्ट वचन सहते हैं। किसी कवि ने सत्य कहा है :
छप्पय मूख बुरी संसार में, भूख सबही गुण खोये। भूख बुरी संसार, भूख सब को मुख जोवे ।। भूख बुरी संसार में, भूख कुल काण घटावे। मुख सूरी संसार, मुख प्रावर नहि पावे।। भूख गमाघे लाज, पति भूषण कार में।
मन रहस मनोहर इम कहें, मुख बुरी संसार में ।। अर्थ सुगम है। ऐसा क्षुधा रूपी चौथा दोष भी सकल परमात्मा अरिहन्त भगवान् के नहीं होता। उन्हें मेरा बारम्बार नमस्कार हो।
(x) विस्मय दोष- कैसा है यह दोष? इसके होते हुए जीवों के तन, मन, वचन सब काँप जाते हैं।
भावार्थ-विस्मय नाम आश्चर्य तथा अचम्भे का है सो मोश्चर्यकारी वार्ता के श्रवण करने से विद्या, बल, ऐश्वर्य, व्रत, संयम प्रादि सब ही को बिसराकर चेतनात्मा डावांडोल हो जाती है। ऐसा विस्मय नामक पंचम दोष महन्त अर्थात, सकल परमात्मा के नहीं होता है। उन परहंत के चरण-कमल मेरे हृदय में बसें।
(६) प्रति शेष- यह दोष भी महन्त के नहीं होता है। पूर्व जिस इष्ट वस्तु के लिए उत्सुकता तथा मासक्ति थी उसका वियोग होने से उसका बारम्बार चितवन करना परति दोष है । कैसा है यह दोष ? यह ब्रह्मा, विष्णु, और शिव तीनों के गभित है।
भावार्थ-ब्राह्मा उर्वशी जाति की तिलोत्तमासुरी के राग से प्रति भाव प्राप्त होकर दुःख को प्राप्त हुए। इस कारण से ब्रह्मा में परति दोष विद्यमान है मत: वे दुःखी हैं । कृष्ण महाराज का ग्वालिनियों के साथ रतिभाष या प्रतः जब ग्वालिनियां छिप जाती थी तब वे प्रति भाव को प्राप्त होकर व्याकुल हो बखित हो जाते थे अतः इस कारण से कृष्ण महाराज दःखी हए और शिवजी पार्वती के वियोग से परति भाव को प्राप्त होकर दुःखी होते ये पतः ईश्वरत्व भाव न होने से नाम मात्र ईश्वर कहलाते हैं 1 ईश्वर तो वही है जिसके परति दोष नहीं होता। ऐसा दुःखदायक परति नामक दोष सकल परमात्मा महन्त के नहीं होता। उनको मैं हस्त मस्तक पर धारण कर और मस्तक को पृथ्वी से लगाकर नमस्कार करता हूं।
.. (७) बमोष-खेद प्रति दुःख, कैसा है वह दुःख ? इसका नाम ही सुनकर जीव भय-भीत हो जाते हैं। यह दुःख संसारी जीव के ही होता है । मोर संसार नाम वार-बार जन्म धारण करने का है।