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________________ णमोकार पंप २३५ रामचन्द्र अधीर हो उठे। उनसे वह दुख सहा नहीं गया । वे रोकर कहने लगे हाय ! मैं बड़ा पापी हूं जो मुझे असमय में ही यह यन्त्रणा भोगनी पड़ी। प्यारे भाई का मुझे बियोग हुमा । मुझं इस बात का और भी दुख है कि मैं विभीषण के सामने प्रसत्यवादी हो जाऊंगा। यह मुझे क्या कहेगा ? जो हो, मैं उससे क्षमा चाहता हूं। भाई विराधित ! तुम चिता तैयार करो । भाई लक्ष्मण के साथ मैं भी अपनी जीवन लीला पूर्ण करुगा । मैं बिना भाई के क्षणमात्र भी नहीं जी सकता। तुम सबसे मैं क्षमा चाहता हूं।" रामचन्द्र इस प्रकार कह ही रहे थे कि इतने में एक विद्याधर ने पाकर हनुमान से कहा-मैं लक्ष्मण के जीने का उपाय बताता हूं। मेरा कहना सुनो।" हनुमान ने प्रसन्न होकर उससे पूछा-तुम जल्दी उपाय बतायो । लक्ष्मण का चित्त बहुत खराब है। विशेष वार्तालाप के लिए समय न मिलने से मैं क्षमा मांगता हूँ।" वह बोला-कि एक बार मुझे भी शक्ति लगी थी तब उसे हटाने के लिए मुझपर विशल्या का जल छिड़का गया था अब भी जब कभी हमारे यहाँ किसी तरह की महामारी चलती है तब उसी के जल से शांति की जाती है । तुम भी वैसा ही करो।" सुनकर हनुमान ने कहा-"विशल्या कहां रहती है ?" विद्याधर कहने लगा-द्रोण नाम का एक राजा है। यह भरत का मामा है। उसके विशल्या नाम की कन्या है। तुम उसके पास जामो।" यह सब वृतान्त हनुमान ने रामचन्द्र से प्राकर कहा। उसर में रामचन्द्र ने कहा-हो सके तो शीघ्र ही उद्यम करो । इसमें हमारी क्या हानि ? यह सुनकर इस कार्य को करने के लिए हनुमान मोर भामन्डल दोनों कीर उद्यत हुए। वे उसी समय वहां से चलकर अयोध्या पहुंचे और अपने पर बीती हुई समस्त घटना भरत को कह सुनाई। सुनकर भरत को रावण की इस दुष्टता पर बड़ा क्रोध माया । वह रावण से युद्ध करने के लिए अपनी सेना को तैयार होने की आज्ञा देने लगा। तब हनुमान ने उसे समझाकर कहा कि युद्ध की आशा करना अभी उचित नहीं है। प्रथम भ्रातृ जीवन का उपाय कीजिए वे तुम्हारे मामा द्रोण की विशल्या नामक पुत्री के स्नान किए हए जल के सिंचन करने से जीवित हो सकते हैं । इसके अतिरिक्त और कोई उपाय नहीं। प्रतएव प्रथम जल लाने का उद्योग कीजिए। भात ने कहा-अभी रात्री है । सूर्योदय होते ही मैं विशल्या का स्नानोदक लादूंगा। हनुमान ने कहा-अापने कहा वह तो ठीक है परन्तु लक्ष्मण के सूर्योदय होना अच्छा नहीं है क्योंकि जिसके शक्ति लग जाती है, यदि उसका प्रतिकार रात्री में ही कर दिया जाए तो अच्छा है नहीं तो सूर्योदय होने पर उसका जोना कठिन है। प्रतएव जहां तक हो सके प्रभी जल लाना उचित है। उठिए विमान उपस्थित है । मैं भी प्रापके साथ चलता हूं। भरत उठे पौर विमान में मारूढ़ होकर अपने मामा के यहां पहुचे । सोते हुए राजा द्रोण को उठाया मौर उससे सब वृतान्त कहा । द्रोण ने उसी समय विशल्या को बुलबाया और कहा बेटी! लक्ष्मण शक्ति के पापात से मूछित पड़ा हुमा है अतः तू अपने शरीर का जल शीघ्र दे दे, जिससे यह सचेत हो सके। पिता के वाक्य सुनकर विशल्या ने विनीत होफर उससे पूछा पिताजी ! लक्ष्मण कौन है? उत्तर में द्रोण ने कहा-बेटी! लक्ष्मण दशरथ की रानी सुमित्रा का पुत्र तथा रामचन्द्र का लघु भ्राता है। रावण ने उस पर शक्ति मारी है प्रतएव हनुमान तुम्हारे शरीर का गंधोदक सेने माया
SR No.090292
Book TitleNamokar Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeshbhushan Aacharya
PublisherGajendra Publication Delhi
Publication Year
Total Pages427
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size14 MB
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