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________________ जमोकार प्रेम भी सेना लेकर युद्ध भूमि में प्रा पहुँचे । दोनों वीरों ने अपनी अपनी सेना को युद्ध करने की प्राज्ञा दी। अपने-अपने स्वामी की आज्ञा पाते ही दोनों ओर के योद्धानों की मुठभेड़ हो गयी । घोर युद्ध होना पारम्भ हुआ । हाथो-हाथियों के साथ, घोड़े-घोड़ों के साथ, रथ-रयों के साथ और पैदल सेना अपने समान बालों के साथ भयंकरता से लड़ने लगीं। दोनों सेनामों में बड़ा भयंकर युद्ध हुआ। हाथीहाथियों से, घोड़े-घोड़ों से, रथ-रथों से, पैदल सेना-पैदल सेनामों से मारी गयी। इस भीषण युद्ध में राम की सेना ने रावण की सेना को व्याकुल करके भगा दिया। जब रावण ने देखा कि युद्ध से सेना भागी जा रही है तो यह स्वयं उठा और अपने भागते हुए वीरों को ललकार कर कहा-वीरो यह भागने का समय नहीं हैं । ठहरो ! इन पामरों को धराशाई बनाकर विजय श्री प्राप्त करो। वे लोग कायर हैं जो युद्ध में पीठ दिखाकर भागते हैं । तुम ऐसे वीर होकर थोड़े से मनुष्यों की सेना से भयभीत होकर भागे जाते हो । क्या इसी का नाम वीरता है ? युद्ध में पीठ दिखाकर अपने कुल को कलंकित मत करो बरन यश लाभ कर स्वर्ग प्राप्त करो। यह कहकर वह अपने वीरों को साथ लेकर राम की सेना से प्रा भिड़ा। भिड़ते ही उसने अपने पराक्रम का विलक्षण परिचय दिया। उस समय राम की सेना रावण के प्रहार को सहन न कर इधर-उधर भाग निकली । यह देखकर लक्ष्मण को पूछने पर ज्ञात हुआ कि रावण के प्रहार को सहन न करने के कारण सेना भाग रही है तब उसने अपने वीरों को ललकार कर कहा-वीरो, भागो मत । तुम्हारा सेनापति अभी भागे होकर रावण को पराक्रम का परिचय कराये देता है । तुम अपनी आंखों से देखोगे कि रावण की क्या दशा होती है ? यह कहते हुए लक्ष्मण अपने वीरों को साथ लेकर युद्धभूमि में जा पहुंचे। दोनों वीर (राम और लक्ष्मण) ताल ठोककर युद्ध भूमि में उतर पड़े । मुष्टि प्रहार तथा अस्त्र-शस्त्र से दोनों का घोर युद्ध हुआ। इसमें लक्ष्मण ने रावण को व्याकुल कर दिया और उसके हाथी को गिरा दिया। उस समय रावण अपने हाथी को बेकाम जानकर नीचे उतर पड़ा और क्रोध के आवेश में पाकर लक्ष्मण के ऊपर शक्ति चलाई। शक्ति व्यर्थ न जाकर लक्ष्मण के लगी। इससे वह मूछित होकर पृथ्वी पर गिर पड़ा। जब यह वृतान्त रामचन्द्र को मालूम हुआ तब वह लक्ष्मण के पास पाए और लक्ष्मण को मूछित देखकर स्वयं भी मूछित होकर गिर पड़े, उनका शीतलोपचार किया गया। तब कुछ समय के बाद वे सचेत हुए। भाई की यह दशा देखकर उनको असह्य दुःख पहुंचा। युद्ध रुकवा दिया गया। रावण से रामचन्द्र ने कहा-हमारे भाई लक्ष्मण का चित्त अप्रसन्न है इससे युद्ध बन्द कर दिया जाय ।" राम के कहे अनुसार रावण ने युद्ध बन्द कर दिया। रावण यह समझकर कि मैं अब सर्वथा विजयी हो गया, मुझे अब किसी का भय नहीं है, अपनी राजधानी में जाकर सुखपूर्वक रहने लगा। इसी अवसर में अष्टाह्नि का पर्व आ गया । सब धर्म ध्यान में लग गये। किसी को युद्ध की चिन्ता न रही। उधर राम लक्ष्मण को युद्ध भूमि से अपने डेरे पर ले गये। कुटिल रावण के भय से विद्याओं के द्वारा कटक की रक्षा का प्रबन्ध किया गया। रामचन्द्र को तो भाई के शोक में रोने के अतिरिक्त कुछ भी नहीं सूझता था। उनकी यह दशा देखकर सुग्रीव आदि को बड़ी चिन्ता हुई। इससे उसने रक्षा का और भी सख्त प्रबन्ध किया। रामचन्द्र दुखी होकर भामंडल से बोले तुम अपनी बहिन के पास जाम्रो और उससे कहो कि तुम्हारे लिए लक्ष्मण ने अपने प्राण दे दिए हैं और अब उनके साथ-साथ रामचन्द्र भी अग्नि में प्रवेश करेंगे । तुम अपनी कुल की रीति न छोड़ना।"
SR No.090292
Book TitleNamokar Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeshbhushan Aacharya
PublisherGajendra Publication Delhi
Publication Year
Total Pages427
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size14 MB
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