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________________ जमोकार पंप २०१ नंद ने कहा -'अस्तु, ऐसा ही होगा। प्राप किसी प्रकार का संदेह न करें, पर मेरा आपसे यह कहना है कि मेरे यहां प्राज ही पुत्री उत्पन्न हुई है । आप उसे वहां ले जाकर देवकी को दे दीजिए और इस बालक को मेरे घर पर छोड़कर निःशंक हो जाइये. इससे कंस को किसी तरह मालूम नहीं होगा और पुत्री का प्रसव जानकर वह कोई विधन भी उपस्थित नहीं करेगा। यदि उसने कोई अनुचित कार्य किया भी तो पाप ये न समझे कि मेरी पुत्री को वृथा जान जायेगी। यह बालक जोवित रहा तो मैं समझंगा कि मेरे सैकड़ों पुत्रियां हैं।' नंद की इस सहानुभूति को देखकर वसुदेव बहुत प्रसन्न हुए और अपने पुत्र को रक्षार्थ सौंपकर उसकी पुत्री को लेकर शीघ्र ही घर पर पाकर देवकी को सौंप दिया और आप अपने घर चले गये। उधर प्रातः काल होने पर कंस की स्त्रियाँ जागी और पुत्री को उत्पन्न हुई जानकर अपने स्वामी से कहने लगीं-नाथ ! अबकी बार जानकी के पुत्री उत्पन्न हुई है। ये सुनकर कंस सोचने लगा कि मेरी मृत्यु इसके द्वारा होगी या इसके पति के द्वारा । यदि इसके पति के द्वारा मेरा मृत्यु होगो ती पहले ही ऐसा उपाय न करूं जिससे कोई इसे चाहे ही नहीं। ऐसा विचार कर वह उसी समय प्रसूति गृह में पहुंचा और वास्तव में ही लड़की को देखकर उसको कुरूप बनाने के लिए उसकी नाक काटली और फिर देवकी को दे दी। देवकी कुछ समय पर्यन्त वहां रहकर फिर अपने घर चली गयी । इधर बालक तो ग्वाले नंद के घर दिनों-दिन शुक्ल पक्ष की द्वितीया के चन्द्रमा की तरह बढ़ने लगा और उधर कंस के सुख की इति श्री होने के कारण तथा भावी कुल के विनाश के सूचक उत्सात दिनोंदिन बढ़ने लगे। तब कंस ने किसी विचक्षण बुद्धि निमित्तज्ञानी को बुलाकर पूछा-मेरे घर में उत्पात क्यों होते हैं ? नैमित्तिक ने कहा-'राजन् । प्रापका कोई शत्रु वन में वृद्धि को प्राप्त हो रहा है। उसी के द्वारा प्रापकी जोवन यात्रा समाप्त होगी। उत्पात होने का यही कारण है।' यह सुनकर कंस मानसिक व्यथा से बहुत दु:खित हुआ। उसने अपनी रक्षा का कोई पौर उपाय न देखकर अपने पूर्व भव के मित्र देवों का पाराधन किया। वे प्रत्यक्ष हुए तब उसने कहा-'मरे मित्रों मेरा पात्र वृद्धि को प्राप्त हो रहा है। जिस प्रकार से भी बने उसे निर्मूल को।' उसी समय एक देव उसकी पाशानुसार पूतना का वेष धारण कर नंद के घर पहुंचा और पपने स्तनों पर हलाहल विष लगाकर बालक को दुग्ध पिलाने लगा। बच्चे ने उसकी बुरी वासना जान ली और दूध पीने के छल से उसके स्तनों को काट लिया तब कपट वेषी देव चिल्लाकर भागा । दूसरे दिन पन्य देव भी अनेक रूप धारण कर कृष्ण को कष्ट पहुंचाने के लिए प्राए परन्तु उस भाग्यशाली बालक का वे कुछ भी न कर सके। देवों ने सब घटना ज्यों की त्यों कंस को जा सुनाई । कंस सुनकर बहुत चिंतातुर हुआ। निदान कंस ने अपने शत्रु श्रीकृष्ण को मारने के लिए यमुना से कमल लाने को भेजना, नाग शय्या पर शयन करना, सारंगधर धनुष को चलना, पांचजन्य शंख को बजवाना मादि उपायों द्वारा कृतकार्य होना चाहा, पर बेचारे कस को देव ने कुछ भी सफलता प्राप्त नहीं होने दी। इससे कंस को बड़ा दुःख हुमा। फिर उसने एक और उपाय सोचा। उसके यहाँ चाणूर भीर मुष्टिक नाम के दो पहलवान थे। कंस ने उन्हें बुलवाकर एकांत में उनसे पूछा--'क्या तुम लोग शत्रु का कुछ उपाय कर सकोगे? ... उन्होंने कहा-'महाराज! आपकी पाशा होनी चाहिए। फिर देखो । शत्रु को यमपुर ही पहुंचा देंगे।'
SR No.090292
Book TitleNamokar Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeshbhushan Aacharya
PublisherGajendra Publication Delhi
Publication Year
Total Pages427
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size14 MB
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