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________________ णमोकार ग्रंथ वसुदेव बोले- 'ऐसा क्यों कहते हो ? क्या कभी मैंने तुम्हारे कहने का निषेध किया है, फिर किसलिए इतना आग्रह करते हो ? कंस बोला - 'यदि ऐसा है तो मुझे वचन दे दीजिए-ताकि में प्रार्थना करूँ ।' जब वसुदेव वचन दे चुके तब कंस बोला - "आगे से मेरी बहन का प्रसूत मेरे घर पर ही हुआ २०० करे ।' तब उत्तर में वसुदेव ने कहा- 'अस्तु, यह तुम्हारी भगिनी है। इसकी प्रसूति तुम्हारे घर पर होने में हमारी कोई हानि नहीं है। कंस अपना अभीष्ट सिद्ध हुआ जान प्रसन्न होकर अपने घर पर चला गया। उसके चले जाने के पश्चात् वसुदेव के किसी हितू ने कंस के आग्रह का यथार्थ कारण बता दिया । सुनकर वसुदेव और देवकी बहुत दुःखी हुए। पर बन भी क्या सकता था ? क्योंकि वह पहले ही वचन बद्ध हो चुका था, बस यहीं से कंस और वसुदेव में परस्पर प्रांतरिक वैमनस्यता रहने लगी, परन्तु बाहर से वैसा ही दिखाऊ प्रेम रखते थे जिससे दूसरे उनके वैमनस्य को न जान सकें । प्रथानंतर कुछ समय व्यतीत होने पर देवकी गर्भवती हुई। जब गर्भ सात मास का हो चुका तो कंस देवकी को अपने घर ले गया और बड़ी सावधानी के साथ उसकी रक्षा करने लगा। नवम् मास संपूर्ण हो जाने पर देवकी ने युगल पुत्रों को जन्म दिया । तब देवों ने उसके पुत्रों को उठाकर उनके स्थान पर मृतक युगल ला रखा । जब कंस को देवकी के मृतक युगल पुत्र प्रसूत होने का समाचार मालूम हुआ तभी निर्दध कंस ने उन पुत्र युगलों को जंषा पर पैर रखकर चीर दिया । कंस की यह निर्दयता देखकर देवकी और वसुदेव बहुत दुःखी हुए। मागे और भी दूसरे और तीसरे युगलों को निर्दयी कंस ने इसी प्रकार मार डाला। कुछ समय बीतने पर जब देवकी के गर्भ में नवें नारायण श्रीकृष्ण ने आकर अवतार लिया तब देवकी को शुभ समाचार के सूचक माठ स्वप्न हुए । उनके फल को जानकर दोनों दम्पत्ति सुखपूर्वक रहने लगे। उधर गर्भं धीरे-धीरे बढ़ने लगा । यह गर्भं पांच ही महीने का हुआ था कि कंस आकर फिर देवकी को अपने घर पर ले गया और प्रतिदिन सावधानी से उनकी रक्षा करने लगा। सातवें महीने में भाद्रपद कृष्णपक्ष की अष्टमी को रात्रि के समय रोहिनी नक्षत्र में शुभ लक्षणों युक्त सुन्दर पुत्र रत्न को देवकी ने उत्पन्न किया। उस समय देवकी ने बड़ी बुद्धिमान और सावधानी के साथ गुप्तरीति से अपनी अनुधरी को वसुदेव के पास भेजा। अनुचरी ने जाकर कहा - 'महाराज ! प्रापके पुत्र रत्न उत्पन्न हुआ है। किसी प्रकार उसकी रक्षा करिये।' यह सुनते ही वसुदेव प्रसूतिगृह में गये और पुत्ररत्न को लेकर वहां से गुप्त रीति से चल दिये। उनकी रक्षा करने के लिए उनके साथ बलभद्र भी थे ये दोनों बालक को लिए हुए उस प्रतापी पुत्र के प्रभाव से कुशलतापूर्वक यमुना में से लेकर दूसरी पार वृन्दावन पहुँचे। यद्यपि यमुना वर्षा ऋतु होने के कारण किनारों को तोड़ती हुई बड़े वेग के साथ बह रही थी। परन्तु श्रीकृष्ण के प्रभाव से घुटना तक का जल रह गया वहां एक नन्द नाम का ग्वाला रहता था। उसकी स्त्री का नाम यशोदा था । नन्द ने इन्हें प्राते हुए देखकर विचारा कि आज किसलिए पूज्य महात्मा घर पर आये हैं। उनके निकट आने पर वह बोला- 'महाराज ! आप किसलिए पधारे हैं । तब वसुदेव ने नन्द को अपने पर बीती हुई सारी व्यथा कह सुनाई और श्रीकृष्ण की उन्हें रक्षार्थ सौंप दिया और कहा कि देखो, कहीं कस को मालूम न हो जाए नहीं तो किये कराये पर पानी फिर जाएगा ।
SR No.090292
Book TitleNamokar Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeshbhushan Aacharya
PublisherGajendra Publication Delhi
Publication Year
Total Pages427
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size14 MB
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