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णमोकार अप
होकर चंद्र प्रभाहीन हो जाता है, प्रतएव तुमको अपने आसामा सहित ' है। मेरे देश से पले जाना चाहिए।'
दुर्योधन के घचन रूपी स्वरों से वेधे हुए युधिष्ठिर अपने प्रातामों सहित चलने को उठ खड़े हुए। तब द्रौपदी भी उनके पीछे-पीछे चलने को तत्पर हुई । तब दुर्योधन बोला-'द्रौपदी। युधिष्ठिर तुम्हें हार चुके हैं, इसलिए अब तुम्हें हमारे अंतःपुर में रहना होगा। परन्तु उसके वचनों पर ध्यान न देकर जब द्रौपदी चलने लगी, तव पापी दुर्योधन ने उसका माचल पकड़ कर खींच लिया। तब साध्वी द्रौपदी अपने पर संकट पाया जान जिनेन्द्र भगवान के चरण कमलों का स्मरण करने लगी । उसके अप्रतिम शील ने उसको वस्त्रहीन नहीं होने दिया अर्थात् दुर्योधन के प्रांचल पकड़कर खींचने पर भी अपने सतीत्व के प्रभाव से द्रौपदी वैसे ही की रही । धर्मशील महाराज युधिष्ठिर इस दुष्कृत्य को देखते हुए भी, अपने चित में किषित् भी विकार को प्राप्त न होकर शांत रहे, परन्तु जब मंत्रियों से दुर्योधन की ऐसी दुष्टता न सही गयी तब वे धिक्कार कर कहने लगे-'पापो ! क्यों इस सती को कोषित कर यमके घर का अतिपि बना चाहता है।
तब उसने लज्जित होकर द्रौपदी का प्रांचल छोड़ा। तब वह फिर स्वामी के पीछे चलने लगी। दृढ़प्रतिश पांडव द्रौपदी को साथ लेकर धीरे-धीरे नगर से बाहर निकले। तब सब लोग यही कहने लगे देखो
"राजपुत्र रचित लियाल, हारि विभौ सब गये विहाल ।
तात सजो सूमा भरबान, प्रपया गेह महा गुमान ॥" अयानंतर ये सब द्रौपदी के कारण धीरे-धीरे गमन करते हुए अनेक वन, देश, पुर तथा ग्राम आदि में धूमते हुए फलादिक से क्षुधा निवारण करते हुए साम्यभावपूर्वक सुख दुःख भोगते हुए कितने ही वर्षों तक घूमते-घूमते विराटपुर में मा पहुंचे । यहाँ के राजा का नाम भी विराट ही पा। ये सब नाना प्रकार के वेष धारण कर राजा के पास पहुंचे।
बरो कलावत रूप पुषिष्ठिर ने वहाँ । भीम रसोईवार बनो सोतो जहाँ । नट माटक म ज्योतिषि सहदेव है।
नकुल बरा पशु बोपरी मालिन कहे ॥ राजा ने इनको सज्जन जानकर प्रसन्न हो इनके वेष के अनुसार ही अपने-अपने काम पर सब को नियुक्त कर दिया । सब लोग राजा के सेवक होकर रहने लगे ।
एक दिन महाराजा विराट का साला अपनी भगनी से मिलने पाया। पंतःपुर में मालिन के वेष में द्रौपदी को देखकर कामबाग पोलित हुमा वह द्रौपदी से प्रतिदिन अपनी बुरी भावना प्रकट करने लगा । सती द्रौपदी लज्जा के मारे नीचा मुल कर लेती थी, परन्तु जब उसकी बुरी बासमा को नष्ट न होते देखा, तब उसने एक दिन समस्त वृत्तांत भीम को कह सुनाया। तब
भीम कही सुन होपती, पहियो त एव जाय।
पुर बाहिर मठ है जहाँ, तहो तुम चालो राय॥ दूसरे दिन भीम के कथनानुसार ही द्रौपदी ने कीपक से कह दिया । द्रोपदी की ऐसी इच्छा प्रकट करने पर वह बहुत संतुष्ट हो रात्रि के समय मठ में पहुंचा। वहां भीम गुप्त रूप से द्रोपदी के रूप में बैठा हुमा था। कीचक ने पीड़ित होकर ज्योही द्रोपदी रूपी भीम का अपनी भुजामों से मालिंगम किया, त्योंही उसने भी मालिंगन के छल से दोनों भुजामों के बीच में उसे पार कर इतनी जोर से