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णमोकार ग्रंथ
विचार न करके राज्य के भय से छिपकर मलिन और शून्यागारों में जुड़ा खेलते हैं। अपने विश्वासपात्र ] कुटुम्ब जनों से सदा द्व ेष रखते हैं। इस व्यसन के निराकरण सम्बन्धी शिक्षा देने वाले पूज्य और बड़े तथा कुटुम्बणियों को अपना शत्रु समझते हैं। चोर तथा जुआरी इनके मित्र होते हैं । लुच्चे, लफंगे इनके सहायक होते हैं। जुवारी सब झूठों का सरदार होता है। इसके समान कोई झूठा नहीं होता । जीतने पर तो मांस भक्षण, मद्यपान, वेश्या सेवन तथा श्रत्यन्त मांसाशक्त होने पर वेटकादिक निद्यकर्म करते हैं और हार ही जाने पर जब द्रव्य नहीं रहता, तब चोरी करने को उद्धत होते हैं तुच्छ घन के लिए पर के बाल-बच्चों के प्राण ग्रहण करने में होते हैं। इकराम को करते हैं। सारांश यह है कि जुप्रा खेलने वालों से कोई दुष्कर्म नहीं बचा रहता। इसी कारण द्यूत व्यसन को सब व्यसनों का उत्पादन मूल (जड़) के समान कहा है। इस व्यसनसेवी मनुष्य से न्यायपूर्वक कोई आजीविका संबंधी रोजगार-धंधा नहीं हो सकता। इस व्यसन में फंसकर दूसरों को ठगना ही इनका व्यापार होता है । जुधारी की बात का कोई विश्वास नहीं करता और न कोई श्रादर-सत्कार करता है। जुझारी, पुत्र, पुत्री, स्त्री, गृह, क्षेत्राविक पदार्थों को जुए में हराकर दरिद्री हो उनके वियोग जनित प्रार्तध्यान के प्रभाव से मरने पर दुर्गति में अनेक प्रकार के दुःस्सह दुःख भोगते हैं । द्यूत व्यसन के विषय में भूवरदास जी ने कहा है कि
सकल पाप संकेत ग्राम बाहेत कुलचछ, कलह खेत वाव देत वीसल निज प्रछन गुणसमे तजससेत केतर विशेकत जैसे, प्रोगुण निकर समेत केत लखि बुधजन ऐसे । जुमा समान इहलोक में धान अनीति न पेखिये, इस विसराय के खेल को कौतुक कूं नहीं देखिए ।।
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अतएव धर्म, अर्थ, काम इन पुरुषार्थों से भ्रष्ट करने वाले हिंसा, झूठ, चोरी, लोभ, कपट प्रादि यों के कारण इस लोभ में सामाजिक एवं धर्म पद्धति में निद्य बना देने वाले मरने पर दुर्गति एवं महान दुस्सह दुःखों के दाता इस द्यूतव्यसन को सर्वथा त्यागना योग्य है। देखो, पुण्यशाली पाण्डवों ने इस व्यसन के सेवन से अपने राज्य को हार कर कैसे-कैसे दारुण दुःख भोगे और उन्होंने अनेक देशों में भ्रमण करते हुए कैसी-कैसी कठिन श्रापदाएं भोगीं। इस व्यसन के सेवन से जो अनेक भीषण भीषण दुःख भोगने पड़ते हैं, उन सब दुःखों का वर्णन कैसे हो सकता है ? तात्पर्य यही है कि यह संसार का वक एक प्रधान कारण है । प्रतएव बुद्धिमानों को इस घोर दुःखकारी क्रिया का दूर ही से त्याग कर देना चाहिए। इस व्यसन के सेवन से दुःख उठाने वालों में प्रसिद्ध युधिष्ठिर महाराज का उपाख्यान है जिसके दचित्त होकर अध्ययन, अध्यापन तथा श्रवण करने से लोग घोर दुःख जनक प्रन्याय रूप क्रिया से रुचि हटाकर सुमार्ग के प्रन्वेषण करने में प्रवृत्त होंगे।
धूतव्यसम कथा :
भगवान् के जन्म से पवित्र इस ही भरत क्षेत्र श्रार्यखंड में कुछजंगल देश के अंतर्गत महामनोहर हस्तनागपुर नाम का एक प्रसिद्ध नगर था। उसके राजा थे- धृत। इनका जन्म कुरुवंश में हुआ था। वे धर्मश, नीतिश, दानी, प्रजाहितैषी और शीलस्वभावी थे। इनके तीन रानियां थीं। उनके नाम क्रम से अम्मा, बालिका तथा अम्बिका थे । तीनों हां रामियां अपनी-अपनी सुन्दरता में मद्वितीय थीं। इन तीनों
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