SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 106
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मोकार ग्रंथ चौवह मल दोष नख, बाल, प्राण रहित शरीर, अस्थि, कण, (जो गेहूं आदि का तुष) राध, स्वचा, बीज, रक्त मास, सचित्त फल, कन्द, सचित्ताचित्त फल और मूल इस प्रकार ये चौदह मल दोष हैं । इस प्रकार अन्तराय के छयालिस दोष का वर्णन किया गया है। ॥ इति छयालिस दोष वर्णनम् ।। अव चोथो प्रादान निक्षेषण समिति का वर्णन करते हैं :--- रखी हुई वस्तु को ग्रहण करने को प्रादान कहते हैं और ग्रहण की हुई वस्तु के धारण करने को निक्षेपण कहते हैं। जिससे किप्ती जोव को बाधा न पहुंचे इसी प्रकार ज्ञान के उपकरण शास्त्र. संयम के उपकरण पोछी. शौच के उपकरण कमंडलु तथा संस्तर आदि को यत्नाचार पूर्वक उठाने धरने को प्रादान निक्षेपण समिति कहते है। पांचवीं प्रतिष्ठापन समिति जीव जन्तु रहित तथा एकान्त स्थान में अर्थात जहां असंयमो पुरुषों का प्रचार न हो. अचित्त अर्थात हरि काय मादि रहित, शहर से दूर, गुप्त जगह. विल छिद्र आदि से रहित, जोवरोध से रहित अथवा जहां किसी का माना जाना न हो ऐसे निर्जन स्थान पर मल मूत्र प्रादि का त्याम करना प्रतिष्ठापन समिति है। इस प्रकार ये पांच प्रकार की समिति हैं। ॥पचेन्द्रिय निरोधम् ।। सपरस रसना मासिका, नयन श्रोत को रोष । षट प्रायशि मंजन तमन शयन भूमि को शोध ॥ प्रर्थ-स्पर्शन श्रादि पचेन्द्रिय विषयों में राग द्वेष रहित हो जाना पंचेन्द्रिय निरोध कहा जाता है । उसका स्वरूप इस प्रकार है ___ स्पर्शन इन्द्रिय निरोष चेतन पदार्थ स्त्री पुत्र आदि, अचेनन पदार्थ शय्या आदि, स्पर्शन इन्द्रियों के विषय भुत कठोर, कोमल, शीत, उष्ण, सचिक्कन और रूक्ष पदार्थों में राग द्वेप न करना स्पर्शन इन्द्रिय निरोध है। रसना इन्द्रिय निरोध-प्रनशन, पान, खाद्य स्वाध .. ये चार प्रकार का प्राहार पोर दूध. दही, घी, नमक, शक्कर, तेल प्रादि ये छ: रस हैं और तीखे, कड़वे, कषायले, खद, मीठे, पंचरस रूप इष्ट अनिष्ट प्राहार में राग द्वेष न करना सो रसन इन्द्रिय निरोध है। घ्राणेन्द्रिय निरोध --सुख दुख के कारण रसरूप सुगन्धित दुर्गन्धित पदार्थों में राग द्वेष नहीं करना यह घ्राण इन्द्रिय निरोध है। चक्ष इन्द्रिय निरोष-कुरूप, सुहावने, भय उत्पन्न करने वाले पदार्थों का तथा रक्त, पोत, हरित, स्वेत प्रादि रंगों को देखकर राग द्वेष न करना चक्षु इन्द्रिय निरोध है। __ श्रोत्रिय निरोष-चेतन स्त्री, पुरुष, पशु आदि पौर अचेतन मेघ, बिजली आदि और मिश्रित तबला, सारंगी प्रादि से उत्पन्न शुभ प्रशंसा निन्दा मादि के शब्द सुनकर राग, द्वेष नहीं करना ये प्रोत्र इन्द्रिय निरोध है। प्रम षट् प्राबल्या अवश्य करने योग्य क्रिया को आवश्यक कहते हैं । ये छ: प्रकार की हैं-- सामायिक, बन्दना, स्तवन, प्रतिक्रमण, स्वाध्याय और कायोत्सर्ग-इस प्रकार ये छ: मावश्यक
SR No.090292
Book TitleNamokar Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeshbhushan Aacharya
PublisherGajendra Publication Delhi
Publication Year
Total Pages427
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy