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________________ ८२ णमोकार मंच अपरिणत दोप है ।।८।। हरताल, गेरु, खड़िया आदिक अप्राशुक, द्रव्य से लिप्त हुए भोजन वा हस्त द्वारा लिया हुआ आहार ग्रहण करना लिप्त दोष है ।।६।। दातार द्वारा पात्र के हस्त में स्थापन किया हुआ पाहार जो पाणिपात्र से गिरता हो अथवा अपने पाणिपात्र में आये हुए पाहारको छोड़ भोर पाहार लेकर ग्रहण करना परित्यजन दोष है ॥१०॥ शीतल भोजन य जल में उष्ण वस्तु अथवा उष्ण भोजन व जल में शीतल वस्तु मिलाना संयोजन दोष है ॥११॥ प्रमाण से अधिक गृद्धता से भोजन करना अप्रमाण दोष है ॥१२॥ और प्रति गृद्धता सहित आहार लेना अंगार दोष है ॥१३॥ यह भोजन प्रकृति विरुद्ध है'-ऐसा संक्लेश या ग्लानि करते हुए पाहार लेना धूमदोष है ॥१४|| ॥ इति ४६ दोष वर्णनम् ॥ अपने निमित्त स्वतः भोजन तथा उसकी सामग्री तैयार करना अधः कर्म दोष है । यह दोष ४६ दोषों के अतिरिक्त महान् दोष कहलाता है ।। बत्तीस अन्तराय। अन्तराय सिद्ध भक्ति होने के पश्चात् माना जाता है। भोजन को जाते समय ऊपर से काकादिक पक्षियों का बीट कर देना ॥१॥ गमन समय पग को विष्टा मल से लिप्त हो जाना ॥२॥ वमन हो जाना ॥३॥ भोजन को गमन करते हुए किसी के द्वारा मनाकर देना ॥४॥ रुधिर तथा पीव प्रादि का किसी अंग में से बह निकलना ।।५।। भोजन के समय अश्रुपात हो जाय अथवा अन्य को अश्रुपात व विलाप करते देखना ।।६।। भोजन को जाते समय यदि घुटने से ऊँचे चढ़ना पड़े ॥७॥ साधु का हाथ घुटने के नीचे स्पर्श हो जाय ।।८।। भोजन के निमित्त नाभि से नीचा माथा करके द्वार में से निकलना पड़े ।।६।। स्थान की हुई वस्तु भोजन में भाजाय ।।१०॥ भोजन करते हुए अपने सन्मुख किसी प्राणी का बध हो जाय ।।११।। भोजन करते हुए काकादि पक्षी ग्रास ले जाय ।।१२।। भोजन करते हुए पात्र के हस्त में से पास गिर जाय ॥१३॥ किसी प्रकार का त्रस जीव साधु के हाथ में गिरकर प्राण रहित हो जाय ।।१४।। भोजन के समय मृतक पंचेन्द्रिय का कलेवर दृश्य पड़ जाय ॥१॥ भोजन के समय किसी प्रकार का उपसर्ग आ जाय १६॥ भोजन करते हुए साघु के दोनों पावों के मध्य में से मेंढ़क मूषकादि पंचेन्द्रिय जीव निकल जाय ।।१७।। दाता के हाथ में से भोजन का पात्र गिर पड़े ॥१८॥ भोजन करते समय साधु के शरीर से मल तथा मूत्र निकल जावे ।।१६।। भोजन निमित्त भ्रमण करते हुए शुद्र के घर प्रवेश होजाय ।।२०।। साधु भ्रमण करते हुए मूर्खा खाकर गिर पड़े ।।२१।। भोजन करता हुमा साधु रोगवश बैठ जाय ॥२२॥ भ्रमण करते हुए श्वानादि पंचेन्द्रिय जीव काट खाय ॥२३।। सिद्ध भक्ति किये पीछे हस्त का मि से स्पर्श हो जाय ॥२४॥ भोजन के समय कफ थकादिगिर पडे ॥२५॥ भोजन के समय साधु के उदर से कृमि निकल पाये ॥२६॥ भोजन करते समय साधु के हस्त से किसी परवस्तु का स्पर्श हो जाय ॥२७॥ भोजन करते समय कोई दुष्ट साधु को या किसी प्रन्य को खड्ग से मारे या हत्याकरे तो भोजन छोड़ देना चाहिए ॥२८॥ भोजन के निमित्त जाते समय प्राग लग जाए या आग लगने की सबर सुने तो माहार छोड़ दे ॥२६भोजन करने समय साधु के चरण से किसी वस्तु का स्पर्श हो जाम तो भोजन छोड़ देना चाहिए ॥३०॥ भोजन करते समय भूमि में पड़ी हुई वस्तु को हाथ से छू ले या उठा ले तो अंतराय हो जाता है ॥३१॥ पवित्र वस्तु का स्पर्श हो जाय ॥३२॥ इन ३२ अंतराय के प्रतिरिक्त चाण्डाल आदि से स्पर्श हो जाय या किसी का कलह हो या इष्ट शिष्यादिक का या अन्य प्रधान पुरुषों के भरण की सूचना सुन ले तो पंतराय माना जाता है।
SR No.090292
Book TitleNamokar Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeshbhushan Aacharya
PublisherGajendra Publication Delhi
Publication Year
Total Pages427
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size14 MB
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