SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 100
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भमोकार पंथ शेष वोहा-उत्पाद पूर्व अमायणी, तीजा वीरजवाद । प्रस्ति मास्ति परवाद पुनि पंचम भान प्रवाद ॥१॥ षष्ठम कर्म प्रवाद है सत्यवाम पहिचान । प्रात्मवार है पाठवा, नवमों प्रत्याख्यान ॥२॥ विद्यानुवाद पूरवरशम, पूर्वकल्याण महंत । प्राणवाद कियावाव है लोकवाव है अन्त ।।३।। अर्थ - पहला उत्पाद पूर्व एक करोड़ पद का है। उसमें द्रव्य के उत्पाद, व्यय और प्रीव्य का वर्णन है ।।१।। दूसरा अग्रायणीपूर्व छयानबे लाख पद का है। उसमें चौदह वस्तुओं का वर्णन है चौदह वस्तुओं के नाम इस प्रकार है : पूर्वांत, अपरांत, ध्र व, अभ्रक, अच्यबनलब्धि, संप्रणिलब्धि, कल्प, अर्थ, भौमवाय सर्वार्थकरुपक निर्वाण, प्रतीत, अनागत, सिद्ध, उपाय ये चौदह वस्तु दूजे पूर्व में हैं उनमें पांचवीं वस्तु अच्यवनलब्धि के पाहुड बीस में चौथे पाहुद्ध कर्म प्राकृत में योगदार हैं उन योगद्वारों के नाम कृति १, वेदना २, स्पर्श ३, कर्म ४, प्रकृति ५, बंधन ६, निबंधन ७, सौत ८, प्रकृम ६, उपक्रम १०, उदय. ११. मोक्ष १२ संकम १३, लेश्या १४, लेश्याकर्म १५, लेश्या परिणाम १६, असातासाता १७, दीर्घल्लस्व १८, भवधारण १६, पुद्गलात्मा २०, निधतानिधत २१, सनिकांचित अनिकांचित२२. कर्म स्थितिक २३, और स्कम्घ २४ ये दजे पर्व की पांचवी वस्तु के चौथे पाहह में चौबीस योगतार कड़े हैं। उनमें अल्प। वर्णन है और भी पूर्व के वस्तुओं के सिद्धान्तों में अन्यान्य पाहुड है ॥२॥ तीसरा वीर्यानुवाद पूर्व सत्तर लाख पद का है। इसमें वीर्यवंत संतों के पराक्रम का वर्णन है ।।३॥ चौथा अस्ति नास्ति प्रवाद पूर्व साठ लाख पद का है। उसमें जीवादि पदार्थों के अस्ति नास्ति भंग का निरूपण है । स्वभाव से सभी प्रस्तिरूप और परभाव से सभी ही नास्ति रूप हैं ॥४॥ पांचवां ज्ञानप्रवाद पूर्व एक कम एक करोड़ पद का है उसमें ज्ञान के पाँच भेदों का निरूपण है ।।५।। छठ वा कर्मप्रवाद पूर्व एक करोड़ अस्सी लाख पद का है उसमें कर्मबंध के बंध का वर्णन है ।।६।। सातवां सत्य प्रवाद पूर्व एक करोड़ छह पद का है । उसमें द्वादश प्रकार की भाषा और दश प्रकार सत्य का निरूपण है। अब प्रथम बारह प्रकार की भाषा का वर्णन करते हैं। प्रथम माम्याख्यान भाषा कोई हिंसादिक का प्रकर्ता और कोई हिंसादिक का कर्ता है । शठबुद्धि ऐसा कहते हैं कि हिंसा कर्तव्य है ऐसे दुर्वचन का नाम प्राभ्याख्यायिनी भाषा है १जिनके कहने से परस्पर कलह हो जाय सो कलहनी भाषा है ॥२॥ तीसरी पैशून्य भाषा, पर के दोष तथा गुप्त वार्ता प्रगट कर दूसरे के सम्मुख प्रगट करना ।।३।। चौथी प्रबद्ध प्रलापभाषा-निष्प्रयोजन तथा वितथ्यवथा बकवाद करना ॥४॥ पांचवीं रत्युत्पादक भाषा जिससे विषयों के भोगने की इच्छा हो ।।।। छठी अरत्पुत्पादक भाषा जिससे प्रति उत्पन्न हो ॥६।। सातवीं वचन श्रवण भाषा जिससे श्रोतामों की अययार्थ वस्तुओं में असक्सता हो ॥७॥ पाठवीं निष्कृति भाषा मर्यात् मन में मायाचार रखकर वार्ता करना ॥८॥ नवमी अन्नति भाषा जो स्वयं से विद्या भायु तथा ज्ञान वृद्ध हैं उनको नमस्कार तथा विनययुक्त वचन न कहना ।।९।। दसवीं मोधभाषा जिससे मनुष्य की स्तेय अर्थात् चोरी रूप प्रवृति हो जाय ॥१०॥ ग्यारहवीं सम्यक्त्व भाषा जिसके श्रवण करने से जीव सम्यकत्व को प्राप्त हो जाय ॥११॥ और बारहवीं मिथ्यादर्शन भाषा
SR No.090292
Book TitleNamokar Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeshbhushan Aacharya
PublisherGajendra Publication Delhi
Publication Year
Total Pages427
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy