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________________ ४५२ 1 कि पूछे कर जोडि । जिनवाणी का नांही वोड | तिरपत न हुवे सुगो पुराण ||५२३३|| जितने भेद सुणे धरि कांन I एक एक रौं वाणी सरस । जं सुगिए बहुलेरा बरस 1 तव न जावें जीव अघा प्रस्न संकुमार के पूर्व भ सालिग्राम नित्योदय राइ | सोमदेव बांभण लिह ठाइ || अनिल कौ भए दोइ पुत्र । अर्गानिभूत दूजा बाय भूत । १५२३५ ।। इन अग्रे पंडित सब हीन || राख घणी गर्भ की गांठ ।।५२३६ ।। विद्या पढि भए परवीन बेद पुराण कहैं मुख पाठ । प्रद्युम्न संबु के कई परजाई ||५२३४|| पद्मपुरा प I भैसा देस देस में सोर || इन समान न पंडित और नंदिवरधन मुनिवर महा मुनी । वाकै संग शिष्य बहु सुनी ||५२३७॥ वन में जोग लिया उन श्राय । आगम सुण्या नित्योदय राई || उतर स्वासन वाही दिसा | करि डंडो मनमा बहु हंसा ||५२३८।। सकल लोग संगति बहु चल्या । बाजंतर जिहां बाजे भला || भई भी वे द्विज के बाल । इनके मन संसय का साल ११५२३६।। नांही पर्व नाहीं त्यौहार। इतनां कहा जाहि इकार ॥ सुरगी बात वण आये जती। दरसण कू चाल्या भूपती ||५२४०|| सकल लोग जावें वा निमित्त | जोग व्यांन सिह महा महंत || इतनी सुरिह वे उठे रिसाइ । ये क्या हैं हम सू अधिकाइ ।।५.२४१।। हम सूकवरण है पूजनीक । मूरख चलें हैं गडरिया लीक || श्रम हम करि हैं उनि सों बाद जे हम से जोते वे बाद ||५२४२ ।। तो हम जागी उनका ग्यनि । नांतर ए सब लोग अयन || दोनू' विप्र गए बन मांहि । व्यानारूढ दिखे तिल काहि || १२४३ संबूकुमर मुनीस्वर एक जिसके हीए जिनेस्वर देवा ॥ मुनि की ढिग दोउं विप्र जाई । कहि कहां ते भाए इस ठद ||५२४४ | बोले जती सहज के भाइ । ग्राम पहुंचे याही ठांइ ॥ पूछें मुनी तुम कहां ले आए। श्रागम कहो सकल समझाइ ||५२४५।। दो इसे विप्र के पुत्र । श्रई श्रई बुत्रि महा विचित्र ॥ देखि प्रत्यक्ष होइ प्रग्यान सालिग्राम हमारा नि ।। ५२४६ ।। ·
SR No.090290
Book TitleMuni Sabhachand Evam Unka Padmapuran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1984
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Mythology
File Size9 MB
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