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________________ मुनि सभार एवं उनका पपपुराण ४५१ पूरख भव छोड़ी थी माई । वात दुख पामा गरभ प्राई ।। मास बिछोहा तो इहां भया । वह वंघ अंक बहा ऊ गया ।।५२२१।। सुदशना जीन भ्रमी पहुंगति । सदा धम्म ध्यान सुहिति ।। तपकरि अस्थी लिंग कीना मंग । करि करणी सुगुरु गुरु संग ।।५२२२॥ उसका जीष सिधारथ भया । वह सनबंध इन सू' थया ।। प ही करम का सरबंध । निसचे सेयं देव जिनद ।।५२२३।। सोरठा भन्न भव किया जु पुन्य, समक्ति सों मन दिख रहा ।। लवनांकुस बलवन्त, रघुबसी जग में तिसक ॥५२२४।। इति श्री पत्रपुराणे लवनांकुस पूरवभव विधानक १०२ मां विधानक सकल भूषण कीरत सब देस । सुरनर पूजा करें नरेस ।। बहुजन भए जती के भाव । जपं घणां जिण जी का नांद ।।५२२५।। किमाही सराचक का व्रत लिया । सरब जीवां की पास क्या ।। पूजा दान करें सब कोइ । परि परि कथा सीता की होई ॥५२२६।। धनि सीता पइसा तप करें । मोह माया सब सुख परिहरै ॥ पाठ दिवस कमही इक मास । सग दोष का कीया नास ॥५२२७।। ऊंच नीच लख नहीं गेह । सरस निरस भोजन लेह ।। लोही मांस गया सब सूख । क्रोध लोभ साघी तिस भूख ॥५२२८|| तप की जोति दिप सब गात । जैसे ससि पूनम की कांति ।। जरजरा भई मुरझाई बदन । जैसे काष्ट फुतली के तन ।।५२२६। बासठ बरस तपस्या करी । तेतीस दिन तपस्या में टरी । छोडि काय लह्मा अच्युत विमान । भया प्रति इंद्र लह्मा सुख थान १५२३०॥ बीस वोइ सागर की ठाव । तप करि पाई एती प्राव ।। राम कंथा सब पूरण भई । श्रीजिन कथा कहैं वहीं नई ।।५२३१।। स्वर्ग सोलह प्रद्युमन अरु संजु । कृष्ण नेह उपज्या कुल थंभ ।। बाईस सागर घससठ सहन । उपजे भुगति प्राव हरिवंस ।।५२३२।।
SR No.090290
Book TitleMuni Sabhachand Evam Unka Padmapuran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1984
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Mythology
File Size9 MB
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