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________________ पपपुराण पूर्व कश प्रस्तुति करि सेवा बह भांति । भयो कौन नगरी मां साति ।। सबै सुण्यां रतनबरघन बली । मिले सकल पुजी मन रसी ।।५२०७।। सरवगुपति बांध्या तिह घरी । प्राया राय किकदा पुरी ।। पट बैठाइ रहे सब लोग । सुखसौं रहइ मूल्या सब लोग ।।५२०८।। राजा करुणा चित्त बिचार । सरबगुपति छोड्या तिह बार ।। सेवा सौं तब कीया दूरि । पापी पाप कमाया भर पुरि ॥५२०६।। भविदत्त मुनि दरसन पाई । सुण्या घरम रति बरधन राई ।। प्रीतंकर हितंकर को दीया राज । पाप लिया दिगंबर साज ॥५२१०॥ सरबगुपति भी दिक्षा लई । वीजाबली मुई राष्यसी भई ।। मनमें कुबुधि बिचारी नई 1 बर भाव उपजावं सही ।। ५२११।। राय कीया मेरा मान भंग । सरवगुपति तप कर वा संग ।। दोनु मुनि पर किया विरोध । मांधी मेह दुःख का प्रोष ।। ५२१२।। बहु उपसर्ग दोन्यू मुनि सहा । केवलम्यान चा समै लया 11 गए मुकति मैं ज ध्वनि हुई । पंचमगति पाई मुनि दुई ।।५२१३।। सुदरसनां जल मुइ तिह बार । पुत्र मोह की करी संभार ।। वे दोन्यू मेरे गरम भए । दुह विरयां ले बिछुड क्यों गए ।।५२१४।। एक बेर मिलज्यो फिर प्रांन । नत समय राख्या इह ध्यान ।। प्रीतंकर हेमंकर भूप । विमल मुनीस्वर देख स्वरूप ।।५२१५।। नमस्कार करि पूछया धरम | दोन्यू भए जती के करम ।। कर तपस्या बारह विध । चारित्र साधं तेरह मन सुध ॥५२१६।। बीस दोइ परीसा सहैं । नवग्रीवेक पाई उनि जहै ।। कासिप देस वामदेव नरेस । गुणां अस्तरी धरम के भेस ॥५२१७।। वसुदेव वासद पुत्र दोइ भए । जोवन समय विवाह करि दए । यसुदेव के विस्वा असतरी। वासिंट के प्रीगिणा गुण भरी ।। ५२१८।। श्रीदत्त मुनी कू दिया प्रहार । पाया भोग भूमि अवतार ॥ तीन पल्य को भुगती प्राव । इसान स्वर्ग परि पाया ठाव ।।५२१६।। जहां ते चए रतन बरघन के ह प्रीत कर हितकर एह ।। थे पहुंच्या नववक विमान । उहां से चया सीता गरभ प्राय ।।५२२।।
SR No.090290
Book TitleMuni Sabhachand Evam Unka Padmapuran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1984
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Mythology
File Size9 MB
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