SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 519
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मुनि सभाचं एवं उनका पद्मपुराण ४५३ मुनिवर बोले अपनो गति कहो । कवरण परजाइ त इह गति लहो ।। प्रेसी सुरिण भए चिक होइ । गति भगति की जाण नहीं कोई ।।५२४७।। वेद पुराण में की होइ बात | कह सकल वांको बिरताप्त ॥ हमको अवधिमान एह नाहिं । गति प्रागति समझाच ताहि ।।५२४८।। मुनिवर बोले मोपें तुम सुगौं । तुमके भव सब ही में भणों ।। मगध देस सालिग्राम समीप । भरत खेत्र तिहां जंबूद्वीप ॥५२४६।। कर्म करि हैं बाह्य करि सांन । जो तिण गया धरती बन यांन ।। घडी च्यार सेती घर वाइ । भोजन किया दिवस में जाह ।।५२५०।। तिहां धनरह बरखा घनघोर । सात दिनां वन मास्था जोर ।। मूले सियाल थे तिहां दोइ । सात दिवस भूखे दुखी होई ॥५२५१।। व्रत्त चांम की भीजी तिहां । भाली गाल मरण ते लहा ।। उठी मूल दोन्यु मर गये । सोमदेव के सुत दोष भए ॥५२५२।। उन फिसाए तिहां सुष लहो । देख ब्रल मन विस्मय भई ।। देखे मुए दोई सियाल । लियं उठाइ उपेडी खाल ॥५२५३१॥ यहि द्विम सुवा पाई के काल । पिता पुत्र के उपज्या बाल । अष्ट वर्ष का हुवा पुत्र । देखो खाल स्पाल संजुक्त ।।५२५४।। भब सुमरणा विन फू भई । मेरी प्रसूति पूत्र घर भई ।। कैसे कहूं पुत्र फूतात । बहु सों कि विध कहिए मात ।।५२५५।। ऐसी समझि रह्या दोउ मूक । मुख से वचन न बोले चूक ।। प्रगनिभूत वायुभूत दोऊ बीर । गये तुरन्त सरके तीर ।। ५२५६।। देखी खाल टंकी तिह ठांय । समझि सांच हीएपरि भाव।। गूगे से सब कही मन की बात । मिटे भेद सब ही इह भांत ।।५२५७।। जछि प्रमुखि साध पं गया । नमस्कार करि ठाढा भया ।। मुनिवर सकल कही समझाय । अपने मन में मति पिछताइ ।।५२५८।। धादि अनादि बिछ गति बीच । कबहीं उत्तम कबहीं नीच ।। नटबा भेष घरचा बहु जौंन । लख चौरासी में कीया गॉन ।।५२५६ ।। पिता होह पुत्र का पुत्र । माता होई धरणी संजुक्त ।। नारी जगनी उत्तपत्र 1 कब ही होई भाई बहन ।।५२६०।।
SR No.090290
Book TitleMuni Sabhachand Evam Unka Padmapuran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1984
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Mythology
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy