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मुनि सभाचंव एवं उनका पद्मपुराण
राजामों को अलग-अलग देश दिया। सुग्रीव को किबंध नगर नल नील को प्रति नगर, विभीषण को लंका राज्य, हनुमान को श्रीपुर का राज्य, रतनजटी को विद नगर एवं भावमंडल को रयनुपुर देश का राज्य दे दिया । शत्रुघ्न ने मथुरा का राज्य मोगा लेकिन राम ने कहा कि मथुरा पर रावण का जामाता मधु राज्य कर रहा है जो बहुत बलशाली है। लेकिन शत्रुघ्न नहीं माना। उसने मथुरा पर आक्रमण कर दिया | मधु ने बहुत भयंकर युद्ध किया । उसे युद्ध के मध्य ही वैराज्य हो गया । वह अत्मचिंतन करने लगा तभी शत्रुघ्न ने उसकी गर्दन उड़ा दी लेकिन जब उसे मधु के वैराग्य का पता चला तो उसने हाथी से उतर कर मधु को नमस्कार किया। मधु मर कर पांचवें स्वर्ग में गया ।
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मधु के मरने के दुःख से उसके व्यंतर मित्रों ने शत्रुघ्म पर प्राक्रम र दिया | धरोन्द्र ने उसे बहुत समझाया लेकिन उसने किसी की नहीं मानी । सर्वप्रथम उसने प्रजा को दुःख देना प्रारम्भ किया। शत्रुघ्न मथुरा छोड़कर अयोध्या लौट श्राया । कुछ समय पश्चात् वहाँ चारण ऋद्धिधारी मुनियों का भागमन हुआ। जिनके कारण नगर में प्रान्ति हो गयी। शत्रुघ्न ने वहाँ राम लक्ष्मण के साथ प्राकर मुनि को बाहार दिया। चारों पोर अपूर्व शान्ति एवं सुख चैन व्याप्त हो गया ।
सीता ने एक रात्रि को दो गर्जन करते हुये सिंह, समुद्र एवं देव विमान देखे राम से स्वप्न फल पूछने पर उन्होंने बतलाया कि उसके दी यशस्वी पुत्र होंगे। सीता को प्रत्येक इच्छा पूरी की जाने लगी। एक दिन सीता का दाहिना नेत्र फड़कने लगा। उससे सीता को बड़ी चिन्ता होने लगी। एक दिन नगर के व्यक्ति मिलकर
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राम के पास आये । वे कहने लगे कि हमारी पत्लियां बिना हमारी प्राज्ञा के इधर उधर जाने लगी हैं। यदि हम कहते हैं तो वे सीताजी का उदाहरण देती हैं जो रावण के घर रहकर आयी है । यह सुनकर राम को बहुत दुःख हुप्रा । उन्होंने तत्काल लक्ष्मण को बुलाया और पूरी बात कही।
राम ने कृतांतवक सेनापति को बुलाया घोर खोला को वन में छोड़ने का प्रादेश दिया । लक्ष्मण ने इसका घोर विरोध किया लेकिन राम ने किसी की नहीं सुनी 1 जब सीता को वास्तविकता का पता चला तो वह पछाड़ खाकर रोने लगी । उसने रोते हुए राम को निम्न सन्देश देने के लिये कहा
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परिजा ने दुखि मत करो, दया समकित चित में परो ।
पूजा दान करो दिन सीता को अपने स्वयं पर
बहुत दुख होने लगा । वह सोचने लगी कि किन पापों के कारण उसे इतना दुःख उठाना पड़ रहा है । कुछ ही समय पश्चात् उस वन में पुंडरीक नरेश वचजंघ का हाथों के कारण वहाँ माता हुआ । उसने सीता का
राति सुमारे समय में इह भांति ||४५८६
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