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________________ प्रस्तावना विलाप सूना मोर उसके पास माकर जानकारी प्राप्त को। वनजंघ के अनुनय विनय करने पर सीता ने अपना परिचय दिया तथा उसे बहिन कहकर घर चलने को कहा । सीता वनजंघ के साथ उसके घर चली गयी जहां परिन ने उसके घरण स्पर्श करके पपने भाग्य को सराहा । उधर कृतांतवक्र ने बहुत विलाप किया और राम के पास जाकर सब कुछ निवेदन किया। राम लक्ष्मण दोनों ही सीता के वियोग में दुःखी रहने लगे। सीता ने अादरण सुदी पूणिमा को युगल पुत्रों को जन्म दिया । चारों ओर प्रसन्नता छा गयी। बनजंघ ने खूब दान दिया। दोनों शिशु से बालक एवं बालक से बड़े हुए । सीता भी अपने बच्चों को पालने में सब दुःख भुला बैठी। शिशु घुटनों के बल चलने लगे। कुछ बड़े होकर गुरु के पास पढ़ने लगे । सभी शास्त्र पढ़े। सम्यग्दर्शन ज्ञान चारित्र के ममं को जाना । धीरे-धीरे दोनों भाइयों ने यौवनावस्था में प्रवेश किया । एक दिन बजजंध ने कुश के लिए पृथ्वीधर से कन्या मांगी। उसके मना करने पर बनजंघ ने पृथ्वीधर पर प्राक्रमण कर दिया । लव कुश भी अपनी माता से प्राज्ञा लेकर युद्ध के लिए चले गये । युद्ध में उन्हे पूर्ण विजय मिली।। राजा वनजंघ की राज्य सभा में नारद का प्रागमन हुमा । नारद से उनने तीनों लोकों की बात सुनी । इसी बीच नारद ने सारी रामायए कह सुनायी । सीता का कारण निष्कासन सुनकर लव कुश ने तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की। उन दोनों भाइयों ने अपनी माता सीता से फिर सारी जानकारी प्राप्त की। लव कुश ने अयोध्या पर अपनी सेना लेकर प्राक्रमण कर दिया। पास-पास के गांवों को लुटने लगे। जब राम ने उनके बारे में सुना तो उन्हें बहुत प्राश्चयं हुथा। राम ने तत्काल अपने सेनापत्तियों को बुलाया। दोनों में भयंकर युद्ध होने लगा। इपर नारद के कहने से भामण्डल सीता से जाकर मिला। और पूरी कहानी सुनी। फिर दोनों सेनानों में घमासान युद्ध हुप्रा । लक्ष्मण ने चक्र चलाया लेकिन वह भी लव कुश के परिक्रमा देकर वापिस भा गया। इतने में नारद ऋषि ने लव कुश का परिचय राम लक्ष्मण को दिया। दोनों भाइयों ने सीता के सतीत्व की प्रशंसा की भोर भपने द्वारा किये गये सीता निष्कासन की निम्दा की । जब राम लक्ष्मण लव कुश से मिले तो चारों ओर प्रसन्नता छा गयी। पिता पुत्र सों जब मिले, हुमा अधिक उल्लास । चन भयो सब नगर में, पूजी मन की पास ।।४८३८।। राम ने सीता को लाने के लिए नल नील, एवं रतनजटी को भेषा । सीता उनके साथ अयोध्या प्रा गयी। सबने उठ कर सीता का स्वागत किया। लेकिन राम ने
SR No.090290
Book TitleMuni Sabhachand Evam Unka Padmapuran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1984
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Mythology
File Size9 MB
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