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________________ ४० प्रस्तावना विभीषण रावण के पास जाकर बहुत रोया । यह कितनी हो बार मूच्छित भी हो गया । राम ने वैद्य को बुलाकर उसका उपचार करवाया। रानियां विलाप करने लगी । तथा छाती पीट-पीट कर रोने लगी। रावण का विभीषरंग ने दाह संस्कार किया । राम ने कुम्भकरण एवं इन्द्रजीत को छोड़ दिया जिन्होंने वैराग्य धारण कर लिया। उसके पश्चात् राम में सेना के साथ लंका में प्रवेश किया जहां विभीषण ने उनका जोरदार स्वागत किया। राम सर्वप्रथम सीता के द्वार पर गये जहां सीता अपने दिन काट रही थी। वह दुर्वल देह हो गयी थी। मलिन केश थे। राम से बिछोह के पश्चात् उसने सब कुछ छोड़ दिया था। सीता ने मांखे खोली और राम के हाथ जोड़ कर वर्शन किये। लक्ष्मण ने सीता के चरण हुए। भामण्डल भाई ने सीता से कुशल क्षेम पूछी । लंका की शोभा निराली थी। वहां कितने ही जिन मन्दिर एवं सहस्रकूट वेश्यालय है। गांतिनाथ स्वामी को जिन प्रतिमा विराजमान थी । मन्दिरों के सभी ने दर्शन किये। पूजा विधान किया। सभी राजाओंों ने राम लक्ष्मण को अपना राजा स्वीकार किया। इसी समय नारद ऋषि का वहाँ श्रागमन हुआ। वे इससे पूर्व अयोध्या जाकर आये थे। नारद ऋषि ने राम से अपराजिता के दुःख एवं भयोध्या में उनकी प्रतीक्षा के समाचार सुने तो राम ने शीघ्र ही अयोध्या लौटने का निश्चय कर लिया। पहले उन्होंने अयोध्या में अपना दूतं भेजा जिससे लंका विजय एवं अयोध्या आगमन का सबको समाचार मालूम हो सके। राम ने लंका का राज्य Frater को देकर भाप सब अयोध्या के लिए रवाना हो गये। वे सभी पुष्पक विमान द्वारा चले । मार्ग में राम ने पुष्पक विमान से वे सब स्थान दिखलाये जहां वे ठहरे थे । प्रयोध्या में पहुँचने पर उनका जोरबार स्वागत हुआ। भरत एवं शत्रुध्न ने वोनों के पैर छुए। चारों मोर द्यानन्द छा गया। कुछ समय पश्चात् भरत को जगत् से वैराग्य हो गया। परिवार के सभी सदस्यों ने उन्हें बहुत समझाया लेकिन उन्होंने जगत् की नश्वरता की ओर सबका ध्यान आकृष्ट किया। इसने में एक उन्मत्त हाथी ने भरत के पास भाकर और स सूड उठाकर उन्हें नमस्कार किया। हाथी को जाति स्मरण हो गया था। भरत एक हाथी पूर्वभव में साथी मे । हाथी पर चढ़कर भरत ने वैराग्य बारण कर लिया उ हाथी भी भोजन पान छोड़कर खड़े-खड़े तपस्या करने लगा इतने में कुलभूष देशभूषण मुनियों का वहाँ आगमन हुआ। लक्ष्मण ने हाथी के पूर्व भव के बारे म उनसे जाना। इससे सभी को जगत् की नश्वरता के बारे में और अधिक विश्वास हुमा राम एवं लक्ष्मण का विधिपूर्वक राज्याभिषेक सम्पन्न हुआ। राम ने सब
SR No.090290
Book TitleMuni Sabhachand Evam Unka Padmapuran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1984
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Mythology
File Size9 MB
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