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पपपुराण
मडिल्ल अशुभ करम सब टाल आइ शुभ करम भले, दोउधां दल संघार सूरमा प्रति भले ।। सीता का सत फला जील रघुपति भई, रावण पाट्या कडज जु कोरत सब गई ॥३६०४।। इति श्री पमपुराणे सोसा राम मिस्राप विषामकं
७३ वां विधानक
चौपई लंका की शोभा
लंका के गढ भ्यंतर चले । तिहा चैत्यालय देखे भले ॥ रतन समान लगे पाखारण । तिनको ज्योति दिपै न्यों भान ।।३६०|| सांतिनाथ जिन प्रतिमा तिहाँ । सहन कूट चल्यालय जिहाँ । दान कीया देव निमद ' सीता के मानद६॥ सब नरेस लिहां प्रस्तुति करें। जै जै सबद सुगत मन भरै ॥ परिक्रमा दीनी सिहाँ तीन । ताल पखावज वजावं बोन ॥३६०७॥ घुरे दमामा नै करनाइ । साल भेर वा तिहां ठांइ ।। गुणीयन गावं जिनपद भले । पदं सतोत्र भूपति सब मिले ॥३६०८|| सांतिनाथ देवनपति देव । इन्द्र धरणेंन्द्र कर सब सेव ।। देइ मुक्ति तिहाँ निरभय घान । अजर अमर जिहां पूरण म्यान ।।३६.६।। असी वस्तु नहीं संसार । जिसकी पटतर कहै वीचार ॥ दरसण अनंत ने ज्ञान अनेत । बलवीरज का नाही मन्त ॥३६१०॥ सारण तरण सांति जिन भये । भव्य जीय त्यारि मुकति को गये ।। सब भूपति मिल पूजा करें । सांतिनाथ पूजा मन धरै ।।३६११। तिहां समाली पर माल्यवान । रतनश्रवा नरपति सिंह थान । गये भभीषण इनके पास । भूपति वे बंटा उदास ।।३६१२॥ मोह प्र ते व्याकुल घणे । संसार रूप समझावं इने । चटुंगति माँहि अमर नहीं कोइ । जामण मरण सब हो को होइ ॥३६१३१ मल विध हैं संसारी भोग । अंसे नंदी नाव संयोग ।। उत्तर गार पार बीछा गये सर्व । पुत्रकालित्र भूमि पर दवं ॥३९१४॥