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सुति सभाव एवं उनका पद्मपुराण
उह वन में इह सोता सती । सुझीया सेव करें बहुभती ॥ भावत देख्या श्री रामचन्द्र । रहसी सेवग भयो आनंद ।। ३८२१॥ जैसे शिपूनम की ज्योति । एक पति का है प्रति उद्योत ।। सीता को बशर
बहु पसार सुप्रिया कहै। श्री रामचंद्र का प्रायम लहै ।। ३८६२ ।। देखो सीता दृष्टि उधार । करो दरसन बेग भरतार || सिर सीता के जटा मलीन । दुरबल देह धरणी प्रति खीन ।। ३८६३।।
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कंत विद्रोह ज्या सिणगार । बहुत लगी काया सुछार ॥ जाऊँ रामचन्द्र का ध्यान महासती जगमें परधनि ||३८६४ ।। पतिव्रता जनक की धिया । घपना मन सब विष हठ किया धनि सीता जे पायें सोल । पंचइन्द्री विषय रार्ष कील 11३८६ प्रपा पति ने जामाता सुदिश्य ।।
सीता सत दिन राष्या भला । निश्चें से तब रघुपति मिल्या ||३८६६ राम सीता दर्लम
खोलि दृष्टि देयो रघुनाथ | नमस्कार करि जोड़े हाथ || ज्यू जल पी सुका खेत । फूलै फल बहु होइ सचेत ॥ ३८६७ ॥
प्रेस सुखों व ग्ररीर । विछोहा की मूल्या पीर भयो समागम देह संभार । लक्षमण भाइ मिल्मा तिवार ||३८३
सीता कु मस्तक नवाइ | नया वर्णनां लक्षमण राष्ट्र ॥ प्रसीस दई सीता भांति । बिछोहे की पुछी सब बात ।। ३८६६|| भामंडल बहन सू मिया । सब परियण सुख माध्यां भला ॥ विराधित सुग्रीव प्रवर हनुमान मलनील अवर अंगद प्रांत ।। ३६०० ॥
भूपति सकल करें नमस्कार । दई भेट फूलों के हार 11
कुंडल कर मोती अति दिपैं । जिनकी जोसि क्रान्ति रवि छ ।। ३६०१ ।।
राम लक्षमण ज्यों सूरज चंद सोभैं दोन्युं अधिक प्रानंद ||
इन्द्राणी की सी जोड । सीता राम सोभ सिंह ठौर । ३६०२॥ चंद्र रोहिणी जोंडो बली । श्रसी इनकी महिमा घणी || सुखों बीतें वासर रयन । सकल प्रथी में हुआ चयन ।।३६०३ ।।