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________________ ३५२ पद्मपुराण मडिल्ल अशुभ करम सव टाल प्राइ शुभ करम भले, दोउधां दल संघार मुरमा प्रति भते ।। सीता का सत फला जीत रघुपति भई, राबरण पाट्या कुटज जु कीरत सब गई ॥३६॥४॥ इति श्री पद्मपुराणे सीता राम मिलाप विषानक ७३ वां विधानक चौपई लंका की शोभा लंका के गढ भ्यंतर चले । तिहां चैत्यालय देखे भले ।। रता समान लें। पारा । तिनको ज्यान में क्यों भान ||३०|| सांतिनाथ जिन प्रतिमा तिहां । सहस्र फूट अस्यालय जिहाँ । दरसन कीया देव जिणंद । सीता के मन में प्रानंद ।।३६.६॥ सब नरेस तिहाँ यस्तुति करें। जज सबद सुणत मन भरें ।। परिक्रमा दीनी तिहाँ तीन । ताल पखावज बजा- बीन ॥३६०७॥ धुरे दमामा नै करना । कंसास मेर वा तिहाँ ठाह ।। गुणीयन गायें जिनपद भले । पढे सतोत्र भूपति सब मिले ||३६०८|| सांतिनाथ देवरपति देव । इन्द्र घरगेन्द्र करें सब सेब ।। देव मुक्ति तिहाँ निरभय थान । अजर अमर जिहां पूरख ग्यान ।।३५.६॥ मैसी बस्तु नहीं संसार । जिसकी पटंतर कदै वीचार ॥ दरसण अनंस ने जान अनंत । बलवीरज का नाही अन्त ॥३६१०।। सारण तरण सोति जिन भये । भष्य जीव त्यारि मुकति को गये ।। सन भूपति मिल पूजा करें । सांतिनाथ पूजा मन धरै ।।३९११॥ तिहां सुमाली पर माल्यवान । रतनश्रवा नरपति सिंह थान ॥ गये भभीषण इनके पास । भूपति दे बैठा उदास ।।३६१२।। मोह अंध तं व्याकुल घसें । संसार रूप समझावं इने ॥ पहुंगति माँहि प्रमर नहीं कोई । जामण मरण सब ही को होइ ॥३६१३॥ इस विध हैं मसारी भोग । जैसे नंदी नाव संयोग ।। उतर गाए पार बीछड गये सर्व । पुत्रकालिन मूमि पर दर्व ।।३९१४१
SR No.090290
Book TitleMuni Sabhachand Evam Unka Padmapuran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1984
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Mythology
File Size9 MB
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