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________________ २४२ एपधुराग जाग पडै गिरि सुमेर । मोभ दंत गिरचा रण घेर ।। राक्षम बंसी रोवं मूप । सुग्रीव प्रादि सोग वे सरूप ॥३७६८।। रोवें सकल उपा. केस । देखें सब रावण के भेस !! हा हा कार करै वह सोर । रावण मृत्यु पडा तिण ठौर ॥३७६६।। परनारी के कारणी, रावण दीये प्राण ।। इह तन भपणा खंडीए, समझो एह सृजाण ।। ३७७०॥ इति श्री पद्मपुराणे वसनीय बष विषानकं ७.वो विधानक चौपई विभीषरण द्वारा भाई के मरण पर विलाप करना भर्भरा या को दोहे पोर चई घां लोग ।। हाइ भाई ए सैंने क्या किया । मेरा कहा से नहि माना हिया ।।३७७११ जो मोहि सेती भई माछु चूक । गही मौत रहै ह्र मूक ।। किरपा करो सुणावो वयन । तो अब मोहि होय सुख चैन ॥३७७२।। सम बिन कैसे जीऊं वीर । तेरे दुख सों जल सरीर ।। तुम दिन घले जात हैं प्रान । आइ सूळ मृतक समान ।।३७७३।। रामचन्द्र लक्षमण तब देख । भभीषण पड्या मृतक के भेस । वैद्य बुलाइ कर उपचार । ऊषद दे करि बीजमां बयार ।।३७७४।। बडी बार में भया सभेत ! व्याप्या मोह भाइ के हैत ।। राबरण का तब पकडे हाथ । ले ले ला छाती माघ ।।३७७५।। बार बार प्रालिंगन करै । हाय वीर तु परयन मरै ॥ बहुरि भयो वह मूविंत । जारी भया प्राण का अंत ।।३७७६।। बहुत जतन सों भई संभार । अंत हैपुर पहुंची यह सार ।। रावण की रानिपों द्वारा पिलाप करना मंदोदरी रंभा चंद्रांन । चंद्रमन उरबसी त्रिय प्रान ॥३७७७।। मलीन रूपणी सीला रत्ल । रस्नमाला रामोदरी बिला । लक्षमी पदमा सु विसाल । रानी सहस्र सभी बेहाल ॥३७७८।। पीट' छाती कूटै देह । सब मिल घाल सिरमें पेह ।। बिन सब मिल रावण भोग । सब नगरी का रोनें लोग ।। ३७७६।।
SR No.090290
Book TitleMuni Sabhachand Evam Unka Padmapuran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1984
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Mythology
File Size9 MB
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