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________________ मुनि सभाचन्त एवं उनका पुरा हाय करम ने कहा किया। बिधना भई महा दुख दिया ॥ कैसे जीने कंत के मुठी। सब मिल पोटे अपना हि ॥३७८०१ कोकिल सबद सुहावन बोल । सब परिवामां मांची रोर ॥ सब श्राए जिहां रावण गडया | देखें लोब जय पर्वत गिरा ||३७८१ ले ले हाथ लगाने हिये । इन व बहुने सुख दिये 1 बहुत भांति के भुगते सुख । ग्रब कु जी कंत के दूख ॥। ३७८२ ।। श्री राय को सरे । सब नारि श्रलिंगन करें। जे सीताकुं देता । याने येता प्रांगा १३७८३ ।। भूमिगोचरी की अस्त्री हरी । परनारी ज्यु पैनोरी ॥ सी विध रावण का मरें । करम प्रदारे किम हरे ।। ३७८४।। ३४३ रामचन्द्र लक्षमण तब श्राइ । समभावें इनकु बहु भाइ ।। रावण का था यही नियोग । अब तुम तओ सकल निज सोग || ३७८५॥ भावमंडल कहै उपदेस । सुणुं वचन भभीषण भुवनेस || रावणरा में साका किया । रह्या खेत सनमुख जिय दिया || ३७८६ ॥ ते बलवत टेक सों मरे । तिनका पावन रस में दरें ॥ धन्य पुरुष जे राग्वं टेक । ते सहस्र में गिखिये एक ॥३७८७॥ पत्री होंय मर पडि खाट जनम अकारथ सिसका घाट 11 इह रण था सुभटां की चोर । श्रसा मरण न पायें और ॥२३७८८ || धनि पनि ए रावण महावली । जाको जुवस्वों पूजी रली ॥1 चक्र लाया में चित्त न किया । ए दिढ रामसा मन में दिया ॥ ३७७६॥ सफल मरण ए तिन विघ जान से हैं उत्तम परमाण || श्रेष्ठ मरम & 1 संग्राम मांहि जे क्षत्री मरी के तपकर संजम व्रत धर ||३७६० ॥ जीत घाठ करम घरि ध्यान से उपजाओं के वनशान ॥ पार्ने अजर अमर पद ठांम । जुग जुग रहे उनू' का नाम ३७६१॥ से संन्यास तजैं जे प्राण । समाधि मरण जग में ए जान ॥ श्री विष सौ मरे जो कोइ । ताका सर्व विघसे जस होइ ||३७६२॥ सों का किम करिये सोग ऊन का ह्ठ बखाने लोग || तीन लोक में अमर है जान | वेद पुराण करें" हैं बात ||३७६३|| वे नहीं मुवा सदा है भ्रमर । अरिदम सा मुखा जान्यां सगर ||
SR No.090290
Book TitleMuni Sabhachand Evam Unka Padmapuran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1984
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Mythology
File Size9 MB
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