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________________ मुनि सभाचंद एवं उनका पमपुराण राज मद में मैं हरा अंघ' । वांच्या अमभ कर्म का बंध ।। चन जोवन सुपने की रिध । जाग्या वस्तुप्रन देखें सिघ्र ।। ३७५४।। ओ मुरख ते मोह बसि पई । ६ यो भत्रमायः में नाई। जे विषफल को देख लुभाइ । जाके भग्वे प्राण उड जाई ।।६३५५॥ उस खायां इक भव ही मरै । पर त्रिया ते भव भन दुरद भरे ।। विभीषण मारा लक्ष्मण को परामर्ग रावण अपणी निंदा करं । भभीषण यु लक्षमण उच्चर । ३७५६।। अवर नृपति जो माण प्राण । ज्या का पात्र हम काम ।। तो करो राज लंका का नहीं । जीन दान त्राको सही ।।३७५७।। रावण का क्रोधित होना रावण मणि अगनि जिम बौ। रे लक्षमा क्या मन में खिल ।। मैं रावण हूँ वली बलवान । थे ते चक्र नहा पत्र प्रान ।।३७५८।। चक्र पाया क्यु काज न सर । जैसे चक्र कुमार का फिर ।। चक्र फिरार होय न कछु । जंस धन पानी कृल तुच्छ ।।३७५६।। वे मन में ही अति गरवन्त । क्षुद्र पुरुष गर्भ बहुवन्त ।। जे तु नारायण होता माज । मैं कहू सोही कर तू काज ।।३७६०।। इन्न सरीखा फेरे तू रूप । तो तू सही नारायण भूप ।। नु नारायण कैसे भया । दसरथ देश निकाला दिया ॥३७६१।। वन बेहट सू भ्रमता फिरचा । सब से कुछ कहुं न बल करया ॥ मैं बालकस्यों बूढा भया । तब से में प्राकर्म वह दिया ।३७६२।। मो पे हे विद्या बल कही । हूं रावण जीती सब मही ।। मोकू तू जाणं है भले । मो सू कहा चक्र को चले । ३७६३।। तु भरम्या है चक्र फिराए । वरांक पुरखा एहै सभाय ।। जितना तरे संगी मपाल । मारु गदा घस पाताल ।३७६८।। में रावण किस की करू सेव । तुम कु अब जिम मिदिर देव ।। निठुर वाक्य बोल्या बहुभाति । सकल सुण्यां राज रघुनाथ ।।३७६५।। लक्ष्मण द्वारा चक्र से राषण का वध करमा लक्षमण कोप्या चक्र फिराई । छुटया ज्यौं बीजली काई ।। रावण इन्द्रधनुष कर गला । अपर्ण बल पौरप उमटा ।।३७६६।। चन्द्रहास खडग नीकाल । रोक भार चक्र की चाल || लाग्या छत्र रावण के हीए । दोए खंड होइ प्रारण उस गये ।।३७६७।।
SR No.090290
Book TitleMuni Sabhachand Evam Unka Padmapuran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1984
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Mythology
File Size9 MB
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