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________________ मुनि सभाचंद एवं उनका पपपुराण ३२५ जई बालक तो बिगड़े कोज । तो नहि लाग उनको लाज !! हम मारै रावण जाइ । ए आठ दिवस जाइ विहाइ ॥३५४४॥ दूरणमानी वा निहाय । पपर, वैदिवाण ।। मकरध्वज राजा संटोप । रतिवर्द्धन छाया करि कोप ॥३५४५।। बाताहरण अरू सूरज उद्योत । महारथ पीतंकर बहु जोत ।। नलनील अरणं नृप घणे । नामावली कहां लग गिणे ॥३४६।। पहुंचे लंका संभले वे भूप । रस्त्रबाले कर रावन रूप ।। कोप्या सकल सुरवा घेर । मंदोदरी समझाय तिरण बेर ।।३५४७।। संकापति प्रागन्यां दई । हिमा कर्म करो मति नई ।। ए इस यांन धर्म की ठोर । अझ कीये ते लाग पोरि ३५४७।। प्राग्या बिन कीजे नहीं जुध । मॅसें कहि मंदोदरी बुधि ।। सगला मिल सोही पोल कुवाउ । लंका माहि पड़ी तब राहि ॥३५४६।। बंदरों द्वारा लंका में उपद्रव करना लंगुर निज विद्या संभार । वानर वारन घर घर वारि ।। जाकू पकई लोचं गात । वालक अस्त्री डरप बहु भांति ।।३५५७१। रावण की माला लई छीन । लु ताहि बहुत दुख दीन । भाजे लोग कोट में घसे । लुटै गाम वानर जु हंस ।।३५५१।। पत्रपाल द्वारा रक्षा क्षेत्रपाल कोप्या तिण धरी । माया रूपी सेना करी ॥ मुख बिकराल राजा नयन । मुदगर हाथ मार मुख वचन ।।३५५२।। कोई रूप स्बंध अरु सांप । प्रगनि रूप धरि देह संताप ॥ लांबी हातिदेह प्रस्थूल । पकई विरछ उपाइँ मूल ॥३५५३।। उनु वृक्ष की कोनी है मार । बानर बंसी मानी हार ॥ भाजि छिपे मूल्या मबसान । छुदरा दुख लंका के थान ।।३४५४।। बहुरउ विद्याधर संभार । मारे देव मनाई हार ।। वे भाजे ए पीछा करें । देखें सकल अचंभा परें ।।३५५५।। पूरणभद्र मणिभद्र खेत्रपाल । विद्याधर मारे भूषाल । भाजे नरपति लंका जोडि । सूरवीर फिर लई बहूरि ।। ३५५६।। सनमुख भए विद्याधर भूप । अह नहीं क्रोध के रूप ।। कर देव वीजली वात । बल पर पवन हट नहीं राति ।।३५५७।।
SR No.090290
Book TitleMuni Sabhachand Evam Unka Padmapuran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1984
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Mythology
File Size9 MB
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