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________________ ३२६ पापुराण बरस मेह मूसलाधार | भाजे विद्याधर कुवार ।। वे दोन्यु देवल मांझ गये । हाथ जोडि तिहां ठाढे भये ।।३५५८।। वानर वंसी कुमर सब प्राइ । हम दुख दिया बहु भाई ।। श्री जिन सांतिनाथ के यान । रावण राय लगाया ध्यान ||३५५६।। सव परजा मूउनों दुख दिया । जिन मंदिर में उपद्रव किया । तुम अग्ने हम कर उपगार । बरजो तुम उनसौं इंग बार ।। ३५६० ।। लक्षमण कह रावण है चोर । सीता हर ल्याया इस ठौर ।। साथै विद्या सुमजीत । एहै कवण धरम की रीत ।।३५६१।। मब हम वह सरभर हैं सही। जे वह विद्या पायै नहीं।। तो हम पाएँ सीता नारि । जई विद्या न हुवै प्रधिकार ।।३५६२।। कारिज हमारा बिगडे सही । अवर सोच हमकुक नहीं ।। पापी • तुम भए सहाइ । हमारा दुख तुम चित्त न सुहाइ ।।३५६३।। अइसा तुम कछ करो विचार । टरै ध्यान पावै नहीं पार ।। कहें देव हम बोल नाहिं । परिजा दुख करिय न चाहि ।।३५६४।। जासों बयर तामु करो युध । अंसा वचन कहे गए सुर सुध ।। सुरणे वचन सब निरभय भये । मन संदेह सहु के गए ।।३५६५।। दहा रामसा साधं ध्यान धरि, विद्या महा अजीत ।। एक खोट वाम बडो, प्रमदा माही चित्त ।।३५६६।। इति श्री पद्मपुराणे समविष्टी देश प्रहार जाकीति विधानक ६४ वो विधानक मंगव का संका में जाकर वहां की स्थिति देखना अंगद लंका देखा पल्या । किंषधको गज साध्या भला ।। चौरासी अरु सोहै झूल । घंटा वादि सुहावरण मूल ।।३५६७।। ऊपर बणी अंवारी लाल । जिहां बैंठा अंगद भूपाल ।। सूर सुभट संग भूपति घरणे । पयादा लोग न जा गिणे ।।३५६८॥ बादल मांहि जिम पुनिम चंद । तिम गज ऊपर अंगद सुरेन्द्र । संक्षा देखि नगर की गली । बोधि वोडि सोभा मति भली ।।३५६६।।
SR No.090290
Book TitleMuni Sabhachand Evam Unka Padmapuran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1984
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Mythology
File Size9 MB
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