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________________ मुनि सभाचंद एवं उनका पम्पुराण दुहा चल कुटंब लक्ष्मी घणी, पाई पुन्य पसाइ ।। रामचंद्र लक्ष्मण बडे, भए मुकटमणि राय ॥१६५७।। इति श्री पद्मपुराणे रामचंद्र सीता विवाह बरणम विशनक २५ दो विधानक चौपई प्रयोध्या मागमन सह परिवार अयोध्या माह । करी बधाई दशरथ राई ॥ सुख में बीत पाठों जाम । भोग्यां भुगतें सस्ताराम ॥१६५१॥ मुद अषाढ प्रष्टमी सुभघडी । पूजा की सामग्री करी ॥ देव सथान संघारमा धरणां । भला भला चंदोबा तणा ।१९५२॥ पष्ट दरब सब लीये सुध । पूजा पर्दै पंडित सुधि ।। गंगा का जल उत्तम नीर । भरे कलस झारी तिहं तोर ||१६५३॥ अति सुबास जल भरधा सुपास I 4 ाई कर परिवार । अरचा चरथा पूजा पाठ । 4सी विध बीते दिन पाठ ॥१९५४॥ मावासी कर सांतीक । जसम खलं धरम की लीक ॥ किया महोछव श्रीं जिन थान । देवसास्त्रगुरु प्रवान ॥१९५५॥ गंधोदक लेना गंधोदिक सिर लिया चढाइ । महल मांहि फिर दियो पठाई ।। मर राणी निज अंग लगाइ । सुप्रभा ने नहीं पहुंच्या जाइ ॥१९५६।। जे व # विया गंधादिक लेइ । ताकू पुत्र जिनेश्वर देइ ।। कुष्टी का तुष्ट जु भग । निरमल होइ देही अगमग ।।१६५७॥ कंचन सम काया तसु होइ । निसचे वत करें जो कोह 11 सुप्रभा राणी की व्यथा सुप्रभा राणी कर अहंकार । प्रणसण लें पौढी तिणवार ।।१६५८।। पसचाताप मन में प्रति घरै । हीन पुन्य जो पूरब करें । पति का तो बाहुं दूषण नही । तात हमारी कारण न रही ।।१६५६।। अब मैं तज दूंगी निज पराण । हमारी प्राज पटाई काण ।। राजा पाये महल मंझार । देखी पड़ी सुप्रभा नार ।।१९।
SR No.090290
Book TitleMuni Sabhachand Evam Unka Padmapuran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1984
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Mythology
File Size9 MB
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