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पमपुराण
भरत का लोमसुदरी में विवाह
वाहि कहो वरमाला सेहि । भरत तणे गले घालेइ ।। मनक कनक प्रति कहै त्रुलाइ । कन्या आई मंडप ठाए ।।१६३३।। देखें सकल भूपती राइ | माला दई भरत गले बालि ।। लोकसुदरी व्याही भरत । तजि बैराग भोग सुख करत ।।१६३७॥ प्रे करम महा बलवंत । मोह सिंधु में बुड़े अन्त ।। भवसागर तें कठिन निकाल । जे उछल काहु बाल ॥१९३८।। मोह सिला ले बोले फेरि । जीव करम में राख्या घेरि ।।
जनक नरेन्द्र दीनी जिवणार | वेस देस के नृप की कर मुनहार ||१६३६।। मिष्ठामों का वर्णन
मंडप तल में बैठा मप । सोवनथाल भरि रखे अनूप ।। रत्लो जडित तवाई घरे । सुवन कटोरा दुग्ध ले भरे ॥ १६४०॥ फीरणा फीरणी अरु न रफी स्वेत । धेबर लाडु पस्या हेत ।। लरमे सीरा पूरी धनी । बहुत सुवास तनो की मनी ।।१६४१।। धोल बड़े व्यंजन बहु भांति । हरे जरद बहु गमें न जात ।। भात दाल भति घ्रत्त सुवास । सिखरण का दौना रि पाति ।।१९४२।। तामें यूरा लायची लोंग । मेवा मेल्या तिहां मोहन भोग ।। मीठा मिरच जीरों का मिल्या । लूण संघात तिहां बिल्या ।।१९४३। जीम्या भूपति एकई पांति । चनु लेड मुख गोध करात ।। लोग कपूर केशरि जावतगे। बी डा बांच्या चोली धरी ।।१९४४।। झाये रत्व कनक नग जरे । बीहा बांधि तिन अग्रे घरे ।। नृपति खाय सभा के बीच । लगाए अडिग चाव गला नीच ।। १६४५।। केसरि छिडकी बहुत गुलाब । रंगारंग हुयां बहु भाव ।। कामणि मावै मंगलचार । सह कुटख को पावै नार ११६४६।। चौरी रची उषंड बराच । प₹ बेद धुनि पंडित राइ । वाजा बह बाज दरबार । नत्य करें' गाई नर नारि ।।१९४७।। रामचंद्र सीता का व्याह । दोऊ कुल में अधिक उछाह ।। बाही लगन विवाहो घणी । ते सुख सोभा जाय न गिणी ॥१६४८।। सोदा बहुत दिया भूपती । नाही गिणत मंताछती ।। रहस रली सु सुधरघा काज । प्राय अयोध्या भुगत राज ||१६४९।