SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 26
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भनि समाचं एवं उनकी पपपुराण जा घट राम नाम का वास, ताकै पाप न प्राव पास | जिल अवरराम राम जस सने देवलोक सुख पार्च घने ।।२४।। इसलिये कवि पद्मपुराण के अन्त में लिखा है कि जो व्यक्ति इस राम काव्य पद्मपुराण को पडेगा, स्वाध्याय करेगा, उसे तीनों लोकों का यश, सम्पत्ति एवं बभत्र प्राप्त होगा जो कोई सुराग धरम के काज, पावै तीन लोक का राज परम ध्यान सु पाप न रहै, केवल ज्ञान जीव वह लहै। १. राम राम स्वभाव से सरल, उदार, दयालु हैं । माता पीता के पूरे प्राज्ञाकारी हैं अपने भाइयों से स्नेह रखने वाले है । शक्ति बाण द्वारा लक्ष्मण के मूपित होने पर बैं जिस तरह विलाप करते हैं वह उनके आत प्रेम का अनूठा उदाहरण है मै देख्या भाई का मरण, मवर भया सीता का हरण, काठ संघल प्रगनि में जरूं, लक्ष्मण का कैसे दुख भ६ ।।३३१-१।। राम प्रजावत्सल है । प्रजा के दाद में दुःखी एमं सुख में सुखी होने वाले हैं । प्रजा प्रसन्तोष अथवा सीना के प्रति गलत धारणा के कारण वे गर्भवती होने पर भी सीता का परित्याग करने में किञ्चित् भी नहीं घबराते । इसके अतिरिक्त पग्नि परीक्षा लेते समय भी कटोर हृदय वाले बन जाते हैं इसलिए उन्हें हम उन्हे “वजादपि कठोराणि मृदूनि कसमादपि" वाले स्वभाव का कह सकते हैं। राम पद्मपुराण के नायक हैं। पुराण का सम्पूर्ण कथानक उनके पीछे चलता है। राम शक्ति के पुज भी है। मुख में विजय प्राप्त करना ही उनका स्वभाव था। राघण असे शक्तिशाली शाएक से युद्ध करने में ये जरा भी पीछे नहीं हटे और अन्त में उस पर विजय प्राप्त करके ही लौटे। लेपिन अकारण युद्ध करना उनका रवभाष नहीं नहीं पा । वे रावण को अन्त तक समझासे रहे और युद्ध को टालते रहे । राम दूरदर्शी राजनीतिज्ञ भी हैं 1 जो भी उनकी शरण में मा गया वह जनका होकर रह गया । सुग्रीव, हनुमान, नल नील जैसे योद्धाओं को उन्होंने सहज ही अपनी ओर मिला लिया । विभीषणः जन प्रथम बार ही उनकी शरण में पाया तभी उसे लंकाधिपति कह कर सहज ही में उसे भी अपने पक्ष में कर लिया। राम जिन भक्त हैं। जहां भी अवसर मिला इन्होंने जिन मन्दिर के दर्शन किमे । देशभूषण एवं कुलभूषण जैसे महामुनियों को प्राहार देने में कभी पीछे नहीं रहे । वे अनेक विधानों के धारी है। राम जीवन के अन्तिम समय में दीक्षा लेते हैं तथा घोर तपस्या करते हैं।
SR No.090290
Book TitleMuni Sabhachand Evam Unka Padmapuran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1984
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Mythology
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy