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________________ १६ इसी तरह वीर रस से तो पद्मपुराण मरा पड़ा है। पुराण में स्थान स्थान पर युद्ध होते हैं जो वीर रस से पूर्ण हैं। राम रावण युद्ध का एक वन देखिये - घोड़ा से घाढा तब लड़े मंगल सौ मंगल प्रति भिडे | रथको रथ पर दिया हिया पेल, प्रेस भिडे ज्यों खेलत दोषां बरखे विद्या वास, गोला गोली करें मारै खडग ट्रक हो, पीछा पाव न हरि विभत्स रस युद्ध में योद्धाओं के सिर, हाथ, पाथ बारा बहने लगी और सारा देखिये प्रस्तावना परवत मुङ भुजा का भया पडी सोन नदी यह तिहा लोध, जैसे मगरमच्छ जल तिरं, जेता रहा मुझा दोट सेन तिनका कहि म स मल्ल ।। ३२६६ ॥ घमसान ! कोइ ॥ ३३०० ।। कट कट कर गिरने लगे। रक्त की दृश्य भयानक लगने लगा। इसी का एक वर्णन लोभ पग जाई न दिया । हाथी घोडे रथ सूर बहोत || ३७३१।। लोथ रक्त में फिरे । कोड मेन ॥ ३७३२ || शान्त रस- पुराण में यत्र तत्र संसार के विरक्तता, प्रसारता, तप का महत्व एवं तत्वों का वर्णन मिलता है जिसको पढ़ कर मन को शान्ति मिलती है तथा मन रागादि भात्रों से दूर हटता है । जे जीव हठ समकित घरं, मिथ्या धरम निवार निसचे पायें परम पर्य, मुगतै सुख पार ||४९६१।। जीव तर संसारी दौड़, भव्य अभव्य उभय विष हो । अभव्य तपस्या करं श्रनेव, काया कष्ट बिना विवेक ||४६६२|| रस विधान के समान प्रकारों का भी भड़ा उपयोग हुआ है । इसलिये उपमा, उत्प्रेक्षा जैसे कुछ प्रकार हो यत्र तत्र मिलते हैं। पुराण का समीक्षात्मक अध्ययन - पद्मपुराण भारतीय संस्कृति का कोण ग्रंथ हैं । उसमें संस्कृति एवं समाज का अच्छा वर्णन हुआ है। उसके नायक राम हैं जो भारतीय संस्कृति के प्रेरणास्रोत है । राम की भक्ति एवं उनका गुणानुवाद पुण्य क्षेत्र का कारण है । पापों से मुक्ति दिलाने बाला है। राम के गुरु अथाह हैं जिनका बन करना भी साधारण कार्य नहीं है राम नाम गुन गम अयाह से गुन किस पं वरने जाय । जामुख राम नाम तीसरे, सो संकट में बहुरि न परं ||२३||
SR No.090290
Book TitleMuni Sabhachand Evam Unka Padmapuran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1984
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Mythology
File Size9 MB
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