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________________ प्रस्तावना वे जब पाहार के निमित्त जाते है तो लोग द्वारापेक्षा करते है और उनको माहार देने में अपना महोभाग्य समझते हैं। मातम ध्यान करे रामचन्द्र, वाणी सुनत होई प्रानन्द । इनके गुण प्रति प्रगम अपार, राम नाम त्रिभुवन माधार ॥५५६६।। रसनां मोटिक कार बखान, उनके गुण का अन्त न पान । इन्द्र घरऐन्त्र जो प्रस्तुति करे, ते नहीं बोर अन्त निखर ।।५५६७।। राम को केवल ज्ञान होता है और निर्वाण प्राप्त करते हैं। २. लक्ष्मण राम के लघु भ्राता है लेकिन पाठवें नारायण है। छाया की तरह राम की सेवा में रहते हैं। जन्म से लेकर मृत्यु तक वे अपने बड़े भाई का कभी साथ नहीं छोड़ते हैं। मद्यपि दे नारायण हैं, शक्तिशाली है, अनेक विधामो के प्रधिपति हैं सेकिन अपने बड़े भाई को देवता सुल्य मानते हैं और उनकी सेवा करने में ही अपने जीवन की सार्थकता समझते हैं। वे चक्रधारी हैं। रावण के पलाए हुए चक्र को ये ग्रहण करते हैं मोर उसी चक्र से रावण का सिर काट देते है लेकिन इसका उन्हें किञ्चित् भी अभिमान नहीं है लेकिन शत्रुओं के लिये वै यम के समान हैं । लक्ष्मण की मृत्यु देखकर राम विलाप ही नहीं करते फिन्सु अपने भाई का मृतक शरीर लिये फिरते हैं। रामचन्द्र देखें निराइ, पीत वरण देख सब का । किह कारण स्ला इह भ्रात, मुखसों कबत न बोले बात ।।५४४२।। अन्य दिवस मोहि प्रावत देखि, मादर करता पटाभिषेक । मेरे साथ बहुत दुख सहे, दण्डक बन माही जब हम रहे ।।५४४३।। रामरण मारै मेरं काज, रघुवंसी की राखी लाज । सुम बिन कैसे जीउं प्राप, कैसे इह मेटो संताप ॥५४४४।। ३. सीता जनम सुता सीता राम की प्रादर्श पस्नी है। वह अपने शास्त्र के लिये सर्वत्र प्रसिद्ध है । वह भारतीय संस्कृति की जीती जागती मूर्ति है । पति की अनुगामिनी है तथा उनकी प्राशा पालन ही उनके जीवन की उपलब्धि है । बनवास में वह उनकी छाया की तरह सेवा करती है। अपहरण के पश्चात बह रावण की मशोक वाटिकर मैं रहती है । रावण उसे फुसलाने का भरसक प्रयत्न करता है लेकिन उसके पतिक्त के कारण किसी को नहीं पलती। वह हनुमान की बातों पर अब तक विश्वास नहीं करती जब तक वह स्वयं प्राश्वस्त नहीं हो जाती।। सीता कहै सुगु हनुमान, तुम अन राम कद की पहचान । मैं तुम नहीं देख्या सुण्या, किस विष उरणसौ सनबंध दण्या ।
SR No.090290
Book TitleMuni Sabhachand Evam Unka Padmapuran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1984
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Mythology
File Size9 MB
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