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________________ ान ९८५ विजयोदया-- लोभे य यदेि पुण लोभे च वृद्धिमुपगते पुनः । कजाकज्जं धारो प्रिषि कार्ये अकार्य च न मनसा निरूपयति । इदं कर्तुं युकं न वेति । तो ततः युक्तायुक्त विचारणाभावात् । अप्पणो मरणमपि अगणिता आत्मनो मृत्युमध्य गणय्य | चोरियं चौर्य करोति । बंदीग्रहणं, तालोद्वादनसंप्रयेशादिकं च । भयं मृत्योः कष्टतरमवस्थितमपि न गणयति नरवीर्य प्रवृत इति भावः ॥ पदार्थोंका सान्निध्य प्राप्त करके जब लोभ कर्मका उदय होता है तब लोभ वृद्धिंगत होता है. लोभ बढने आगे लिखे हुए दोपकी वृद्धि होती है--- अर्थ - लोभ की वृद्धि होनेपर मनुष्य करने योग्य अथवा न करने योग्य कार्यका मनसे विचार ही नही करता है अथवा अकार्य भी उसको योग्य जचता है. युक्तायुक्त विचार के नष्ट होनेसे जिससे मरण प्राप्त होगा ऐसा भी साहसकर्म करनेके लिये उद्युक्त होता है. चोरी करता है. चोरी करनेसे कारागृह में दुःख भोगता हैं. श्रीमंत वरका ताला खोलकर अंदर प्रवेश करता है. मृत्युका कष्टतर भय उपस्थित होनेपरभी लोभाविष्ट मनुष्य कुछ पर्चा नहीं करता है. न केवलमात्मन एवोपद्रवकारि चौर्य अपि तु परेषामपि महतीमानयति विपदमिति कथयति - सब्धो उबहिदबुद्धी पुरिसो अत्थे हिदे यसो वि ॥ सत्तिप्पहारविद्धो व होदि हियमंमि अदिदुहिदो ॥ ८५८ ॥ सर्वोच्य हृते द्रव्ये पुरुषो गतचेतनः ॥ शक्तिविद्ध व स्वान्ते सदा दुःखायते तराम् ॥ ८६९ ॥ विजयोदया सम्यो उहबुद्धी सर्वो जनः उपहितबुद्धिः स्थापित खितः । अथे वस्तुनि एवं स्थिति । आदिदेय सच्चो चि सर्वोऽपि जनो बधे हते । अतिदुद्दिदो भतीव दुःखितो भवति । किमिव सतिप्पहारषिद्धो दिये शक्त्याख्येन शकोण हृदये वित्त इव । चोरी करने से चोरकोही उपद्रव होता है ऐसा नहीं. अन्य लोगोंके ऊपर भी उससे बड़ी विपत्ति आनी है. अर्थ - सर्व लोकोंकी बुद्धि धनमें आसक्त रहती है. इसलिये ऐसे धनका चोरकेद्वारा हरण होनेपर उनको मरणतुल्य दुःख होता है. हृदयपर शक्तिनामक शखकी वोट लगनेपर जैसा दुःख होता है वैसा धनहरण होनेसे दुःख होता है. माश्वासः ६ ९८१
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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