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________________ - आश्वास: मूलाराधना अर्थ-असत्य बोलनेसे इहपर लोकमें जो दोष उत्पन्न होते हैं वे ही दोष कर्कशवचनादिकसे भी उत्पन्न होते हैं ऐसा समझना चाहिये। -- ९७८ - उपसंहारगाथा एदेसि दोसाणं मुक्को होदि अलिआदिवविदोसे ॥ परिहरमाणो साधू तन्विवरीदे य लभदि गुणे ॥ ८५२ ।। असत्यमोचिनो दोषा मुंधति सकला इमे ।। तद्विपक्षा गुणाः सर्वे लभ्यन्ते बुधपूजिताः ॥ ८६२॥ भवभयविचयनवितधविमोची निरुपमसुखकराजिनमतराची॥ परमं दवयति कलिलमशेषं घशथति मुनिनुतवचनविशेषम् ॥ १६॥ इति सत्यम् ।। विजयोदया-पतंभ्या दोनभ्यो मुक्तो भवनि व्यळीकादियचने योपान्यः परिहाति साधुः । लभनि नचिन रीदे तेनापि दोषप्रतिपक्षभूतान्यत्ययितावादिगुणान् । प्रन्ययः, कीर्तिः, असंकंदा, रतिः, कलहाभावः, निर्भयनादिकश्च । सच॥ उपसंहार गाथा अर्थ-असत्य भाषण, कशादिभाषणोंके दोषाका जो त्याग करता है वह पुरुष इन दोषाक प्रतिपक्षरूपी गुणोंकी प्राप्ति कर लेता है. अर्थात् जगमें विश्वास, कीर्ति, असंक्लश, कलहका अभाव, निर्भयता वगरह गुणोंका उसको लाभ होता है. सत्यमहाबतका वर्णन हुआ. -- - --- - ५७८ व्याख्याथ सत्यवतं सृतीयवतं निगदति- . मा कुण तुमं बुद्धिं बहुमप्पं वा परादियं घेत्तु ॥ दंतंतरसोधणयं कलिंदम पि अविदिण्णं ॥ ८५३ ॥
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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