SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 994
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आश्वास मूलारापना कर्णावतभी दोलायमपर भाषण अनेक चार वाले हुए सत्यभाषणोंका संहार करता है. असत्यवादी पुरुष स्वयं भी मनमें डरता है. शंकायुक्त रहता है. मेरा असत्यभाषण यदि प्रकट होगा तो मेरा नाश होगा ऐसी भीति उसके मनमें उत्पन्न होती है, अप्पच्चओ अकित्ती भंभारदिकलहवेरभयसागा ॥ बधबंधभेदणाणा सब्वे मोसम्मि सण्णिहिदा ।। ८४८॥ अप्रत्ययो भयं वैरमकीर्तिमरणं कलिः ॥ विषादो मत्सरः शोकः सर्वेऽसत्यस्य बांधवाः ।। ८५७ ।। आगासरसनाछेदसर्वस्वहरणादयः ।। इहासत्येन लभ्यते परत्र नरकावनिः ॥ ८५८ ।। विजयोद-भपओ अप्रत्ययः । अकीर्तिः, सक्लेशः, अरतिः, फलहो, वैरं, भयं, शोकः, वधो, बधः, मनभेदः, धन नासयमी दोषाः सनिहिता पवचने । अर्थ- अविश्वास, अर्काति, सक्लेशपरिणाम, तिरस्कार, कला य, शोक, वध, बंध, स्वजनमें फूट, और धनका नाश ऐसे पाप सत्यभाषणसे उत्पन्न होते हैं... पापरसागमदार असच्चवयण भणति हु जिर्णिदा ॥ हिदएण अपावो वि हु मोसेण गदो बसू णिरयं ॥ ८४९ ॥ कलिलस्यास्रघद्वारं वितथं कथितं जिनः ।। निष्पारो हि वसुस्तेन श्रितेन नरकंगतः ॥ ८५ ॥ विजयोन्या-पापस्यागमद्वारमिति घनत्यसत्यं जिनंद्राः । हृदय अरापोऽपि मृषामात्रेण अमर्गतो नरफ इत्याख्यानकं वाच्यं । अर्थ-जिनेंद्र भगवान असत्य मापण पाप कर्मके आसब दरवाजेके समान है ऐसा कहते है अर्थाद
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy