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________________ मुलाराधना अर्थ-सत्यके आश्रयसे तप और संयमकी वृद्धि होती है. इस सत्यका आधार पाकर ही सर्वगुण अपनी वृद्धि कर सकते हैं. समुद्र जैसे मच्छोंका आश्रयस्थान है वैसे संपूर्ण गुणोंको सत्य आश्रय स्थान है, आश्वासः सच्चेण जगे होदि पमाणं अपणो गुणो जदि वि से णत्थि ।। अदिसंजदो य मोसे ण होदि पुरिसेसु तणलहुओ ।। ८४३ ।। संपद्यते गुणाः सत्ये संयमो नियमापः।। संयतोऽपि मृषावादी जायते तृणतो लघुः ।। ८५१ ॥ विलयोदया-सच्चेण जगे होदि सत्येन जगति भयति । पमाण प्रमाणं । यद्य यन्यो गुणो नास्ति । अतीव संयतोऽपि सतां मध्ये तृणवल्लघुर्भवति मृपावचनननि गावार्थः ॥ अर्थ-पुरुषमें सत्यक सिवाय अन्य गुण न होनेपर भी सन्यगुणस ही यह प्रमाण माना जाता है. महान संयमी मुनि भी सत्पुरुष के समदायमें असरघ वचन बोलनेसे उपपके ममान तुच्छ होजाता है. होदु सिहंडी व जडी मुंडो वा णग्गओ व चीवरधरी ।। जदि भणदि अलियवयणं विलंबणा तस्स सा सव्वा ।। ८४४॥ मुंडो जटी शिखी नमश्चीघरी जायतां नरः ।। विशंपनाखिला सास्य वितथं यदि भाषते ।। ८५३ ॥ विजयोदया-होदु सिइंडी भवतु नाम शिखायान् । जडी मुंडो या। नग्नश्चीवरघरो या पलीकं चदनि तस्य सा सर्चा विसपना || अर्थ-मनुष्य शिखा रखनेवाला हो, जटा धारण करनेवाला. हो, मुंडन करनेवाला नम अथवाचीवरधारी, हो. यदि वह असत्य बोलता है तो यह सर्व उसकी विटेवनाही समझनी चाहिये. जह परमण्णस्स विसं विणासयं जह व जोव्वणस्स जरा ॥ तह जाण अहिंसादी गुणाण य विणासयमसच्चं ॥ ८४५ ॥
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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